इस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने दुनिया की 10 वीं सबसे बड़ी बस बनाने वाली कंपनी खड़ी कर दी

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Ashok Leyland story
Success Story of Ashok Leyland who is founded by Raghunandan Saran. Its a leading commercial vehicle manufacturer in India.

Chennai: भारत में बस और ट्रक की बात की जाए तो एक नाम सबसे ऊपर लिया जाता है, जिसे हम सब जानते हैं अशोक लीलैंड के नाम से। पर क्या आप जानते हैं अशोक लीलैंड को बनने में कितना लंबा सफर तय करना पड़ा। एक छोटे से वर्कशॉप से शुरू की गई है, कंपनी आज दुनिया की 10 वीं सबसे बड़ी ट्रक निर्माता कंपनी बन चुकी है।

इसका इतिहास भी बड़ा स्वर्णिम रहा है, क्योंकि ट्रक बनाने वाले कभी देश की स्वतंत्रता में भाग लेकर स्वतंत्र सेनानी (Freedom Fighter) हुआ करते थे और बाद में एक व्यापारी के रूप में औद्योगिकरण के हिस्सेदार बन गए।

भारतीय सेना में भी अशोक लीलैंड का एक बहुत बड़ा योगदान है, आर्मी को दिए जाने वाले ज्यादातर व्हीकल्स अशोक लीलैंड की फैक्ट्री में ही तैयार किए जाते हैं। आगर रोड पर देखें तो लगभग 80 प्रतिशत ट्रक या बस आपको अशोक लीलैंड कंपनी के ही देखने को मिलेंगे।

अशोक मोटर्स की शुरुआत जानते हैं इसका इतिहास

एक हिंदी अख़बार में छपे लेख के अनुसार रावलपिंडी के रहने वाले रघुनंदन सरण आजादी के समय एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कार्यकर्ता सक्रिय थे। बाद में जब देश आजाद हुआ, तो उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सभी तरफ औद्योगिकीकरण को बढ़ाने का जोर दिया।

उस समय रघुनंदन शरण (Raghunandan Saran) अपने पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते काफी बड़े लोगों में उठा बैठा करते थे, उस समय उनके पिताजी का एक छोटा सा मोटर गैरेज का काम था। बाद में उन्हें भी जिम्मेदारी महसूस हुई कि देश की प्रगति के लिए वक्त आ गया है कि औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा जाए।

इस प्रकार छोटे से मोटर गैरेज से निकल के चेन्नई के एक हिस्से में अशोक मोटर्स (Ashok Motors) नाम की फैक्ट्री की शुरुआत की जो ट्रक बनाने का काम करती थी। साल 1948 में शुरू की गई इस कंपनी का नाम रघुनंदन शरण ने अपने इकलौते बेटे अशोक के नाम पर रखा।

जानिए कब अशोक मोटर्स को बनाना पड़ा अशोक लीलैंड

काम को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से रघुनंदन शरण ने देखा की कमर्शियल विकल की मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अगर आगे बढ़ना है, तो किसी अन्य कंपनी का साथ होना जरूरी है। इसी दौरान उन्होंने यूके की लीलैंड कंपनी के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का करार किया।

साल 1949 में ऑस्टिन 40 नामक कार को 100 प्रतिशत भारतीय तकनीकी साथ मैन्युफैक्चर और असेंबल तमिलनाडु स्थित प्लान में करना शुरू कर दिया। दुर्भाग्यवश एक एयर दुर्घटना में रघुनंदन सरण एग्रीमेंट की शुरुआत में ही दुनिया से चल बसे।

बाद में यह एग्रीमेंट का करार मद्रास हाई कोर्ट एवं कुछ कंपनी के प्रमुख शेरहोल्डर्स के अगुवाई में पूरा किया गया। जिससे नाम पड़ गया कंपनी का अशोक मोटर्स की जगह अशोक लीलैंड (Ashok Motors and became Ashok Leyland in the year 1955)।

सबसे ज्यादा ट्रक एवं डबल डेकर बस के निर्माता भी लीलैंड हुए

जैसे-जैसे कंपनी आगे बढ़ी गवर्नमेंट से भी बड़े ऑर्डर्स मिलना शुरू हुए। 1970 में भारतीय सरकार ने आर्मी के लिए 10,000 ट्रक बनाने का आर्डर कंपनी को दिया यह आर्डर बहुत बड़ा था, उसे पूरा करना भी अपने आप में एक चैलेंज था, लेकिन अशोक लीलैंड ने इसे बखूबी निभाते हुए ऐसे मजबूत ट्रकों की डिलीवरी दी, जो सेना को हर परिस्थितियों में मजबूत बनाती रहे।

वही 1967 में पहली बार देश में डबल डेकर बस निर्माण का क्रेडिट भी अशोक लीलैंड को जाता है। बताते हैं उस समय डबल डेकर बस दुनिया के यूरोपियन देशों में ही हुआ करती थी, इससे देश के पर्यटन में भी चार चांद लगे।

2007 में हिंदूजा ग्रुप ने 51 प्रतिशत मालिकाना हक ले के इसका अधिग्रहण किया

रघुनंदन सरन जो देश की स्वतंत्रता के हिस्सेदार भी रहे और इनकी छोटे से गैरेज से शुरू की गई है। कंपनी आज दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी बन चुकी है। जहां एक ओर सिविलियंस के लिए बड़े-बड़े ट्रक और बस निर्माण होते हैं।

वहीं दूसरी ओर मिलिट्री के लिए भी एक से बढ़कर एक व्हीकल निर्माण कर रही 2007 के दौरान हिंदूजा ग्रुप ने अशोक लीलैंड के 51 प्रतिशत शेयर्स को खरीद लिया, जिसके कारण अशोक लीलैंड का मेजोरिटी ऑनर हिंदूजा ग्रुप बन चुका है। परंतु इसकी पहचान हमेशा अशोक लेलैंड (Ashok Leyland) के नाम से ही होती रहेगी।

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