
Delhi: शंकर भगवान को कई नामों से जाना जाता है जैसे भोलेनाथ, शिव शंभू, शंकर भगवान, महाकाल, रुद्राक्ष और ना जाने क्या-क्या। भगवान भोलेनाथ बिल्कुल अपने नाम की तरह ही है। वह बहुत ही जल्द लोगों के द्वारा मनाए जाने पर मान जाते हैं और उनका क्रोध धरती को नष्ट करने के लिए काफी है।
हिंदू धर्म में शंकर भगवान (Shankar Bhagwan) को इष्ट देवता भी मानते हैं। केदारनाथ जिसे देवभूमि भी कहा जाता है। शंकर भगवान का लोक है। जहां वे रहते हैं। हर वर्ष श्रद्धालु यहां लाखों की संख्या में इनके दर्शन को आता है। परंतु आपको बता दें केवल केदारनाथ ही नहीं बल्कि यहां पर पांच ऐसे स्थान है जहां पर भोलेनाथ विराजमान है जिसे पंच केदार के नाम से जाना जाता है।
आपको बता दें महाभारत काल के बाद पंच केदार (Panch Kedar) का निर्माण हुआ, जिसका कारण पांडव थे। जानकारी के अनुसार महाभारत समाप्ति के पश्चात पांचो पांडव मोक्ष की तलाश में भगवान शिव की आराधना कर रहे थे। परंतु भगवान शिव पांचों पांडवों से रुष्ट थे, क्योंकि उन्होंने उनके अपने भाइयों की हत्या की।
इसीलिए भगवान शिव ने वराह अवतार लेकर खुद को केदारनाथ की पहाड़ियों में छुपा लिया था, परंतु पांडवों ने उस वराह को देखा तो वह तुरंत पहचान लिया और वराह रूपी भगवान शिव को पकड़ने के लिए भीम ने अच्छी खासी छलांग लगाई, परंतु भोले बाबा होने के कारण उन्होंने खुद को पृथ्वी को चीरते हुए स्वयं धरती में समा गए। इसीलिए आज यह जगह गुप्तकाशी के नाम से विख्यात है।
ऐसा माना जाता है केदारनाथ की पांच जगहों पर भगवान शिव के शरीर का अवशेष प्राप्त हुआ। जैसे कपिलेश्वर में भगवान शिव का मस्तिष्क, बैल का कूबड़ केदारनाथ में, नाभि प्रकट मध्य महेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में, और हाथ तुंगनाथ में देखे जाते है। इसीलिए इन जगहों पर पांडवों द्वारा मंदिरों का निर्माण किया गया और भगवान शिव की आराधना यहीं से प्रारंभ हुई। जिस वजह से यह जगह पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध हुई। जाने केदारनाथ के उन पंच केदार स्थलों के बारे में।
1. केदारनाथ (Kedarnath)
चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर की तरह नजर आने वाला केदारनाथ समुद्र तल से 3600मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। यहां पर भगवान शिव जब वराह अवतार में थे। तब उनकी कुंवड इसी जगह पर विराजमान हो गई थी। तभी से यह स्थान पूजनीय बन गया है। बाबा केदारनाथ की सेवा करने के लिए प्रतिवर्ष हजारों संख्या में श्रद्धालु आते हैं और बाबा के दरबार में हाजिरी देते हैं।
2. तुंगनाथ (Tungnath)
उत्तराखंड से रुद्रप्रयाग की तरफ जाने वाले रास्ते से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर चोपता ट्रक है। इसी रास्ते पर तुंगनाथ का मंदिर पड़ता है। इस मंदिर की भी काफी ज्यादा मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि वराह अवतार के भगवान शिव के हाथ और पैर इसी जगह पर पड़े थे।
3. रुद्रनाथ (Rudranath)
समुद्र तल से करीब 2300 मीटर की ऊंचाई पर बसा रुद्रनाथ अपनी कलाओं और महिमा के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर भगवान शिव का मुख नीलकंठ स्वरूप देखा गया है। घने जंगलों के बीचों बीच बसे रुद्रनाथ मंदिर के आस पास सूर्य कुंड चंद्र कुंड तारा कुंड और माना कुंड आदि बने हुए हैं।
Rudranath ~ A unique abode of Mahadev at 11800 feet.. #रुद्रनाथ_महादेव pic.twitter.com/KMpznpuqyK
— Rahul Saraswat (@TheHinduRahul) May 30, 2021
इन कुंडों के सामने नंदा नदी नंदा घंटी और त्रिशूल की ऊंची ऊंची चोटिया बनी हुई है, जो आपके मन को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। आपको बता दें रुद्रनाथ का ट्रैक करीब 20 किलोमीटर लंबा है। जिसकी शुरुआत गोपेश्वर से होती है। यदि आप इस पवित्र स्थल में आना चाहते हैं तो आपको इसके लिए थोड़ी तैयारी से आना होगा।
4. मध्यमहेश्वर (Madmaheswar)
लोगो की मान्यता है कि मध्यमहेश्वर ही वह जगह है, जहां पर शंकर जी की नाभि प्रकट हुई थी। यह जगह हरी-भरी वादियों से भरी हुई है साथ ही मध्यमहेश्वर केदारनाथ चौखंबा और नीलकंठ को आपस में जोड़ता है, इसीलिए भी इसे मध्यमहेश्वर के नाम से जाना जाता है।
Each abode of Mahadev is heaven personified..! Madhyamaheshwar (मध्यमहेश्वर) #Uttarakhand pic.twitter.com/Q0cgiGzkwF
— श्री (@DeepaShreeAB) February 5, 2021
इस स्थान का रास्ता 19 किलोमीटर है जिसमें से 10 किलोमीटर का रास्ता काफी आसान है, परंतु 9 किलोमीटर का रास्ता उतना ही मुश्किल है। इसीलिए आप जब भी आए तो पूरी तैयारी से आए।
5. कल्पेश्वर (Kalpeshwar)
कपिलेश्वर का दूसरा नाम जटेश्वर है क्योंकि यह वह जगह है, जहां पर भोले बाबा की जटाएं देखी गई है। यह जगह उत्तराखंड के उर्गम घाटी में आती है। जो समुद्र तल से 2200 मीटर ऊंचा है। घाटी तक पहुंचने के लिए आपको कई घने जंगलों से और हरे-भरे मैदानों से गुजर ना होता है।
घूमने का सही समय, मार्ग और ठहरने का स्थान
जैसा कि हम जानते हैं कि उत्तराखंड एक बर्फीला और पहाड़ी इलाका था। जिस वजह से यदि आप दिसंबर या जनवरी के मौसम में जाते हैं। तो उस समय उत्तराखंड में बर्फबारी चलती है और जुलाई या अगस्त में जाते हैं तो आपको भारी बारिश का सामना करना पड़ता है। जो काफी खतरनाक साबित होता है, क्योंकि इस वक्त उत्तराखंड में भूस्खलन की भी संभावना होती है।
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3. #मध्य_महेश्वर
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5. #कल्पेश्वर pic.twitter.com/AD6v5hT2wE— Darpan 🇮🇳 (@Bhartiy__) July 13, 2021
यदि आप बिना अड़चन के अपनी यात्रा सफलतापूर्वक करना चाहते हैं, तो आप मई जून और सितंबर से अक्टूबर के महीने में जाए इस समय वहां का मौसम ना ज्यादा ठंडा होता है और ना ही ज्यादा गर्म इस वजह से आपकी यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण होगी।
हम बात करें परिवहन की तो उत्तराखंड के केदारनाथ आने के लिए आप सड़क मार्ग रेल मार्ग और वायु मार्ग सभी का इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही यहां ठहरने के लिए भी सरकार द्वारा व्यवस्था की गई।