Churu: कहते हैं कि किसी भी कार्य मे एकदम से कामयाबी नहीं मिलती। छोटी छोटी शुरुआत करने के बाद बड़ी कामयाबी हासिल होती हैं। हर व्यक्ति कठिन परिश्रम करके व अपने जीवन मे कई संघर्ष का सामना करने के बाद अपनी मंजिल तक पहुँच पाते हैं।
संघर्ष करने वाले व्यक्ति ही दिन रात एक करके अपने जीवन के लक्ष्य को एक ना एक दिन हासिल कर दिखाते है। उनमे से ही एक शख्स है, बलकेश। जो कड़ी मेहनत कर आज इतने सफ़ल युवा बन चुके है। कि अब वह इसरो मे राकेट डिजाइन करेंगे।
जी हाँ ISRO में। आइए आज हम इस पोस्ट मे इन सफ़ल युवा के बारे मे बात करते हैं। बता दे कि चुरू मे निवास करने वाले बलकेश सिंह (Balkesh Singh) ने एक परीक्षा दि थी। जो कि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन (ISRO) मे साइन्टिस्ट कि थी।
उन्होने इस एग्जाम मे पूरे देश मे 44 वी रैंक हासिल कि है। जिसके साथ एक बड़ी Opportunity उनके हाथ लगी है। उनके लिए सबसे बड़ी बात यह कि वह आने वाले कुछ दिनों में राकेट डिजाइनिग प्रोजेक्ट पर ISRO के साथ काम करेंगे।
पिता जी को इंजन सही करते देख करते थे इंजन को समझने का प्रयास
चुरू (Churu) के नरवासी गांव से ताल्लुक रखने वाले बलकेश के पिताजी के बारे मे बात करे, तो इनके पिता का नाम बीरबल सिंह है। जो एक ट्रक ड्राइवर थे। उनके ट्रक के इंजन मे जब भी कभी थोड़ी बहुत ख़राबी होती तो उनके पिता जी स्वयं ही उसे ठीक कर लेते थे।
इन सब के बीच बलकेश अपने पिताजी को ट्रक को ठीक करते कई बार देखकर ट्रक के इंजन को समझने की कोशिश करते थे। वह यह सोचते कि इतना बडा ट्रक इतने छोटे इंजन के द्वारा कैसे चलता है।
बलकेश बताते है कि इसी दौरान उन्हें स्कूल और कालेजो मे इनोवेटिव साइन्स इवेंट मे पार्टीसिपेट करने का मौका मिला। उसी समय से ही Inspire होकर उन्होंने ठान लिया की अब उन्हें साइंटिस्ट ही बनना है। उन्होंने साइंटिस्ट बनने के लिए इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन मे एक परीक्षा दि। जिसका परिणाम कुछ दिन पहले ही आया है।
बलकेश अपने परिवार के बारे मे बताते हुए कहते हैं कि उनके पिता घर से जब भी निकलते थे। तो घर वापस आने का कोई पता ही नहीं रहता था। क्योकि कई दिनो तक वह घर से बाहर रहकर ट्रक चलाते थे। उनकी माँ घर का सारा काम करने के बाद भी खेत मे 30 बीघा जमीन की किसानी करती थीं। जो कि बहुत ही मुश्किल का काम था।
वह कहते है की यह सब मेहनत उनके माता पिता उन्हें आगे बढ़ाने के लिए ही करते हैं। इसलिए कुछ कर दिखना वह अपना कर्तव्य समझते थे। पहले बालकेश कि पढ़ाई राजगढ़ मे हुई।
उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उनको परिवार ने तारानगर भेज दिया गया। वह कहते है आज मै पढ़ाई कर साइन्टिस्ट बन गया हूँ और मेरे भाई इंजीनियर है। जो कि हमारे पेरेन्ड्स के लिए गर्व की बात है।
दो बार असफ़ल होने पर तीसरी बार मिली सफ़लता
हम देखते हैं कि किसी भी इंसान को आसानी से सफ़लता प्राप्त नहीं होती है। उसके लिए उनको कई वर्ष तक परिश्रम करना पड़ता है। तब जाकर वह अपनी मंजिल की उँचाईया पर पहुचते है। ठीक ऐसा ही बलकेश के साथ हुआ है।
बलकेश को भी पहली बार मे सफ़लता प्राप्त नहीं हुई। इस ऊचाई के लिए इन्होने कई वर्ष तक मेहनत की। इसरो की परीक्षा मे वह दो बार असफ़ल होने के बाद हार ना मानकर और अधिक मेहनत कर तीसरी बार परीक्षा दी तब जाकर उन्हें सफ़लता मिली।
यह सब सफ़लता प्राप्त करने के लिए उन्हें 5 साल तक एक ही कमरे मे रहना पड़ा। बता दे कि बलकेश ने गेट परीक्षा भी 5 बार उतीर्ण कि है। जो की कंप्यूटर पर आधारित परीक्षा है। जो राष्ट्रीय लेवल पर कराया जाता है। उसमे उन्होने 98 प्रतिशत बनाए थे।
जाने क्या होता है इसरो के काम
बलकेश बताते है कि देश का सबसे बड़ा स्पेस रिसर्च केन्द्र ISRO है। इस केन्द्र मे अंतरिक्ष मे जाने वाले विमान की इंजीनियरिग अलग अलग होती हैं। रॉकेट का कम से कम वजन हो और गति अधिक से अधिक, रॉकेट मे कितना ईंधन देने पर यह अंतरिक्ष तक पहुँच जाएगा, रॉकेट का कौनसा भाग कब गति करेगा? अब यह सवाल तो रहता ही है।
इस बारे में हर एक जानकारी का फ़ैसला साइंटिस्ट ही करते है। इसलिए देश भर मे साइन्टिस्ट को चुनने के लिए सिविल सर्विसेज के जैसे एक परीक्षा होती है। जिसमे मेरा चयन ही नहीं, बल्कि मैने पुरे भारत देश मे 44 वी रैंक प्राप्त किया है। जो कि मेरे कई वर्ष की मेहनत का फ़ल है।
कैसी होती हैं इसरो की परीक्षा
बता दे कि साइंटिस्ट के लिए BARC (भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर) और ISRO का यह एग्जाम वही लोग दे सकते हैं, जिन्होंने B Tech कर लिया है। यह तो सभी को पता है कि इन परीक्षा मे पास होने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। क्योकि राष्ट्र सेवा का यह भी एक जरिया है।
जिसमे एक बार सिलेक्शन हो जाने के बाद इन दोनों केन्द्र मे काम करने का चान्स मिलता है। बता दे कि बलकेश का इस केन्द्र मे चयन होने से पहले उनको एक इंजिनियर की पोस्ट पर प्राइवेट कम्पनी मे नौकरी भी मिल गई थी। कमाई भी अच्छी थीं। परंतु उन्होने यह नौकरी नहीं कि।
बलकेश को 44 वा रैंक हासिल करने पर किया गया प्रोजेक्ट मे शामिल
बलकेश बताते है कि इसरो मे वैज्ञानिक बनना काफ़ी कठिन और संघर्षशील है। चयन के लिए खुद की रिक्रूट्मेन्ट एजेन्सी इसरो ने बना रखी है। जिसमे चयनित होने के लिए हर वर्ष परीक्षा होती हैं। हजारों की संख्या मे छात्र परीक्षा देते है।
बता दे कि सन 2019 मे 134 पद के लिए एग्जाम हुआ था। जिसमे 60 हजार से अधिक छात्रों ने इसमे एग्जाम दिया था किसी एक पोस्ट के लिए पहले 10 लोगो का इंटरव्यू लिया जाता है। इसमे बलकेश के लिए सम्मान की बात यह थी कि उन्होने इन सब छात्रों मे से 44 वा स्थान प्राप्त किया है।
इस दौरान उन्हें नवम्बर के लास्ट तक जाइनिन्ग मिली। जिससे इसरो के द्वारा सबसे पहले उन्हे ट्रेनिंग दी जायेगी। उस के बाद उन्हें किसी प्रोजेक्ट मे शामिल किया जाएगा। बलकेश जैसे युवा को ही देखकर देश के अन्य युवा प्रभावित होते है।