इस रक्षाबंदन में इन लोगो ने चीन की दुकान बंद करवाने की ठानी, RSS ने भी यह योजना बनाई

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Mandla/Jabalpur, Madhya Pradesh: देश के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक रक्षाबंधन में धूम मचाने वाली चाइनीज राखियों का बाजार इस बार औंधे मुँह गिरने वाला है। इसकी वजह है भारत चीन सीमा को लेकर गलवान घाटी (Galwan Valley Laddakh) में विवाद और तनाव के बाद हुई झड़प को माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच इस वजह से लगातार संबंध खराब हुए हैं। चीन के इस रवैए के विरोध में भारतीय बाजारों में काफी समय से माहौल बन रहा है।

चीनी राखियों का बहिष्कार करने के उद्देश्य से संघ RSS ने देश में राखियां बाँटने का मन बनाया है। उससे पता चलता है कि देश की आन-बान-शान को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तत्पर हैं। वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा चलित स्कूल की छात्राओं ने छात्रों को राखी बांधने के लिए स्वयं ही राखी बनाने की निर्णय किया है।

चीनी बिजली के सामान, झालर, दिये, चीनी रंग व पिचकारी के बाद अब चीनी राखी को लेकर विरोध की आवाजें तेज होने लगी हैं। इस बार महिलाओं और बहनो ने यह कमान खुद संभाल ली है। देश के कई शहरों के बड़े बाजारों में महिलाएं खुद भारतीय राखियों की डिमांड पूरी करेंगी और इसमें संग भी उनकी मदत करेगा। दुकानदार से भी साफ कह रहे है की वे चीनी राखी नहीं लेंगे और ना बेचेंगे। अब वे वोकल फॉर लोकल को पूरा समर्थन करेंगे।

अभियान का असर अब दिखने लगा है

चीनी उत्पादों के बहिस्कार के अभियान का असर विक्रेताओं पर भी पड़ा है। बायकाट चीन प्रोडक्ट का रुख देख थोक व्यापारी और फुटकर दुकानदार भी देसी राखियों को ही तवज्जो दे रहे हैं। सीमा पर जवान और देश में आम जनता दोनों ने चीन को सबक सिखाने की ठान ली है। बड़े बाजारों में राखियों की खेप आ चुकी है। वोसे भी कोरोना संकट और लॉक डाउन की वजह से देश से बाहरी आयात पर बहुत नियम लागु किये गए है और अब चीन से व्यापर भी फिलहाल असंभव ही मालूम पड़ता है।

थोक व्यापारियों के गोदाम पर नजर डालें, तो वहां चीनी राखियों की जगह देशी रखिये देखि जा सकती है। एक नंबर न्यूज़ की टीम ने 5 शहरों का दौरा किया है। लोकल लोगो द्वारा बनी विभिन्न आकर्षक राखियों को स्टाक किया गया है। सभी जगह स्थानीय तौर पर बनी राखियों को तजब्बों दी जा रही है। ये राखियां टिकाऊ और सस्ती भी है।

देश के प्राचीन त्यौहार पर विदेशी उत्पाद की जगह नहीं

इससे छोटे कारीगरों और छोटे व्यापारियों को बहुत लाभ होगा। राखी का त्यौहार खुशिया लेकर आता है और स्थानीय और देश के प्राचीन त्यौहार पर विदेशी उत्पाद के लिए कोई जगह नहीं है। इसे आगे बढ़ने के लिए RSS संघ ने भी कमर कस ली है और छोटे कारीगरों और व्यापारियों को मदत के अलावा कुछ स्थानों में फ्री में देशी राखियां बाँटने का अभियान चलने की योजना बनाई है।

अनेक क्षेत्र के लोग देशी अभियान से जुड़ें

मध्यप्रदेश के मंडला (Mandla) जिले के ‘अभिलाष दुबे’ जी ने हमें बताया की वे मंडला में छोटे बच्चो को स्थानीय लोगो द्वारा बनाई गई राखी फ्री में बाटेंगे और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के अभियान वोकल फॉर लोकल (Vocal For Local) को सफल बनाए में अपना योगदान देंगे। अभिलाष जी शिक्षा क्षेत्र से भी जुड़े है और बताते है की वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर से भी पढ़े है। भारतीय संस्कृति उनके संस्कारों में है और चीन से आई राखी से अपना हिन्दू त्यौहार मानना सही भी नहीं है।

जब “एक नंबर न्यूज़” के पत्रकार ने मध्य प्रदेश के जबलपुर (Jabalpur) शहर के एक राखी व्यापारी सोमी केसरवानी ने पूछा की वो देशी राखी बेचने का मन क्यों बना रहे है, तो उन्होंने कहा की के चीन की बनी राखी कैसे ला सकता हूं। चीन हमारा विरोध कर रहा है और हमारे लद्दाख की जमीन पर कब्ज़े की नियत रखता है, ऐसे में हम किसी स्थिति में वहां की राखियों को अपने यहां जगह नहीं देंगे। व्यापारी ने कहा कि चीन में बनी राखियों को बेचकर हम चीन को ही आर्थिक तौर पर मजबूत करें, ऐसा वे बिलकुल भी नहीं करेंगे।

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