कभी जूते के लिए नहीं थे पैसे, बिना जूते दौड़े, अब ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करेंगे

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P Naganathan
25-year old Chennai police constable P Naganathan is bound to Tokyo Olympics as a member of India’s 4×400 metres men’s relay team. P Naganathan success story in Hindi.

File Image

Delhi: लग्जरी स्पोर्ट्स ब्रांड्स से कोसो दूर वाली दुनिया में, गरीबी ने उन्हें उनके हौसले कम नही होने दिये, बल्कि उनके दृढ़ संकल्प को मजबूत किया। मन मे सपना था कि दौड़ना है रेस में, लेकिन जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन, ठान लिए थे कि रुकना नहीं है। ऐसे में नंगे पांव ही प्रैक्टिस शुरू की। ये रेस ऐसी शुरू हुई कि अब वह टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए दौड़ने जा रहे हैं।

अधिकतर उन लोगों की स्टोरी हमारे दिल को छू जाती है, जो कड़ा परिश्रम करके आगे बढ़ते हैं और गरीबी से निकलकर सफलता की बुलंदियों को छूते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है 25 साल के पी नागानाथन (P Naganathan) की जिनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। लेकिन कड़ी मेहनत और हिम्मत कर उन्होंने अपनी सारी मुश्किलों को दूर कर एक प्रोफेशनल धावक बनने की जिद बना ली और इसके लिए उन्होंने नंगे पैर दौड़ लगाना ही शुरू कर दिया, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के पैसे तक नहीं थे।

आज चेन्नई (Chennai) का यह जवान भारत (India) का नाम रोशन कर ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में दौड़ लगाने के लिए तैयार है। पी नागानाथन के संघर्ष की कहानी सुन दिल भावुक हो जाता है। आज, नागानाथन को टोक्यो में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गए है।

अब एक पुलिस कांस्टेबल, नागनाथन (P Naganathan) ने अपने परिवार की मदद करने के लिए सप्ताहांत और छुट्टियों पर मजदूर के रूप में काम किया था। उनके पिता पांडी एक खेत में किसान है और मां पंचवर्णम के चार बच्चे हैं। जब मैंने स्कूल में दौड़ लगाना शुरू किया, तो मैं जूते नहीं खरीद सकता था। इसलिए मैं नंगे पैर दौड़ा। जब मैं डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स मीट में गया, तो मेरे स्कूल ने मुझे एक जोड़ी जूते गिफ्ट किए।

नागनाथन 4×400 रिले में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे । इसमें उनके साथ त्रिची के आरोकियाराज, केरल के मोहम्मद अनस और दिल्ली के अमोस जैकब शामिल है। दरअसल नागानाथन का सपना इंजीनियर बनने का था, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं कर पाए। अंत में उन्होंने बीए इतिहास की पढ़ाई की।

उनका कहना हैं कि ‘मैं कॉलेज की फीस भरने के लिए हाफ टाइम काम करता था। सेमेस्टर के अंत में खेल में मेरी परफॉर्मेंस को देखते हुए मेरी फीस कम कर दी जाती थी।’ इस पर नागनाथन कहते हैं कि ‘मैंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि मुझे ओलंपिक में भाग लेने का मौका मिलेगा। मैं अपनी सफलता का श्रेय अपने पुलिस कोच प्रभाकरन, चेन्नई पुलिस स्पोर्ट्स इंचार्ज और सब इंस्पेक्टर पॉल डोमिनिक और शिवलिंग को देता हूं।’ अपनी पुरानी बात को याद करते हुए बताते है की जब मेरी उम्र 25 साल थी तब मुझे डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स मीट में गिफ्ट जूते मिले थे।

12वीं के बाद वह इंजीनियरिंग करना चाहते थे। लेकिन परिवार की परिस्थिति अच्छी नही थी कि में पढ़ाई कर सकूं। लेकिन मैंने हार नही मानी अपने सपने को बनाये रखा इसके लिए कड़ी मेहनत की। नागनाथन की मेहनत रंग लाई और 2017 में उन्हें खेल कोटा से सशस्त्र रिजल्ट कॉन्स्टेबल की जॉब मिली और उन्होंने 2019 ऑल इंडिया पुलिस मीट में गोल्ड मेडल जीता।

उसके बाद जीत का सिलसिला स्टार्ट हो गया। इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में सीएम ट्राफी जीती। फरवरी में पटियाला में फेडरेशन कप में हिस्सा लिया। जहां वह दूसरे स्थान पर रहे। इसके बाद उन्हें भारतीय टीम के समूह में जुड़ने का मौका मिला। 45 दिनों की कड़ी ट्रेनिंग के बाद उनका सिलेक्शन हुआ।

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