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Jabalpur: भारतीय रेलवे (Indian Railway) भारत की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्रोत है। हर दिन लाखों पैसेंजर ट्रेनों में सफर करते हैं इसीलिए ट्रेनों में उच्च व्यवस्थाएं होती हैं। ट्रेन अन्य वाहनों से काफी भिन्न है सबसे पहले तो ट्रेन का रूट निश्चित होता है। साथ ही उसकी बनावट भी अन्य वाहनों से भिन्न होती है।
ट्रेन में एक इंजन होता है, जिसमें पीछे लगभग आठ से 10 डब्बे लगे होते हैं, जिसमें पैसेंजर यात्रा करते हैं। ट्रेन का इंजन ट्रेन को दिशा निर्देशित करता है। इंजन में है ब्रेक हॉर्न और स्पीड कम ज्यादा करने का पावर होता है। दोस्तों ट्रेन में काफी कुछ खास होता है जो पैसेंजर को जानना जरूरी होता है हम जानते हैं कि ट्रेन में कई प्रकार की हॉर्न होती हैं, जिनका मतलब अलग-अलग होता है।
इसी प्रकार ट्रेन के इंजन में जिसे लोकोमोटिव भी कहा जाता है, इसमें कई तरह की लाइटें जलती है, जो अलग-अलग सिग्नल देती है। तो इस लेख के माध्यम से लोकोमोटिव (Locomotive) पर चलने वाली इन लाइटों (Lights) के विषय में जाने।
लोकोमोटिव मैं बदला हेड लाइट का स्थान
दोस्तों लोकोमोटिव में तीन तरह की लाइट (Locomotive Lights) है जलती थी, जिनके कलर परिस्थितियों के हिसाब से डिसाइड किए जाते हैं। लोकोमोटिव में सबसे ऊपर चलने वाली लाइट को हेड लाइट कहा जाता है और हेड लाइट के नीचे दो लाइट जलती है, जिन्हें लोकोमोटिव इंडिकेटर कहा जाता है, जो एक सफेद और एक लाल होती हैं।
बताया जा रहा है कि लोकोमोटिव हेड लाइट का स्थान परिवर्तित कर दिया गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, लोकोमोटिव हैडलाइट याने शीर्ष पर लगाई गई लाइटें। परंतु अबे इस हेड लाइट का स्थान परिवर्तित कर लोकोमोटिव में दो लाइटों नीचे लगा दिया गया है। यह परिवर्तन का कारण भारतीय रेलवे के द्वारा स्पष्ट किया गया है आगे के लेख में हम जानेंगे परिवर्तन का कारण।
जाना हेडलाइट परिवर्तन का कारण
जैसा कि आपने पुराने लोकोमोटिव देखे होंगे, जिसमें लोको हेडलाइट दोनों इंडिकेटर के ऊपर लगाई जाती थी। परंतु अब जो नए लोकोमोटिव बनाए गए हैं उसमें इस हेड लाइन का स्थान परिवर्तित कर हेड लाइट का स्थान सेंटर में कर दिया गया है। आपके दिमाग में भी चल रहा होगा कि भारतीय रेलवे ने ऐसा परिवर्तन क्यों किया।
आपको बता दें ऊपर लगी हेड लाइट से लोको पायलट को काफी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता था। हेड लाइट का रिफ्लेक्शन लोकोमोटिव के शीशे पर होता था, जिसकी वजह से रात के वक्त लोको पायलट को मार्ग देखने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता थाा। साथ ही बारिश के मौसम में यह है और भी ज्यादा परेशानी खड़ी करता था। बारिश के समय हेड लाइट पर पानी बूंद पडने से लाइट चमकती हुई दिखाई पड़ती थी जिससे आगे का मार्ग धूमल दिखाई पड़ता था।
और क्या बदला
लोको पायलट (Loco Pilot) की परेशानी के साथ-साथ मिस्त्री कर्मचारियों को भी लाइट के खराब होने की स्थिति में उसको सुधारने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था, क्योंकि हेड लाइट सबसे ऊपर होती थी और ऊंचाई में होने के कारण लाइट को सुधारने मैं कई तरह की परेशानियां होती थी।
आपको बता दें रात के समय लोकोमोटिव हेडलाइट की मदद से केवल 350 मीटर की दूरी तक देखा जाए सकता है। याने लोको पायलट रात में केवल एक निश्चित दूरी का मार्ग ही देख पाता है। साथ ही हेडलाइट में दो बल्ब लगाए गए हैं। यदि किसी परिस्थिति में एक लाइट खराब हो जाता है, तो दूसरी लाइट की मदद से यात्रा को जारी रखा जा सकता है। इस बल्ब को चलाने में 24 वाट का डीसी करंट का इस्तेमाल किया जाता है।
लाल और सफेद लाइट का मतलब
जैसा कि हम जानते हैं ट्रैफिक के नियम अनुसार लाल रंग (Red Color) रुकने का प्रतीक है। इसी प्रकार रेलवे में लोको मोटे पर लगी लाल रंग का इस्तेमाल भी पैसेंजर और कर्मचारियों को सूचित करता है कि ट्रेन चलने वाली है।
लोकोमोटिव पर लगी लाल रंग की बत्ती का इस्तेमाल जब ट्रेन शांटिंग के लिए पीछे चलती है, तो रेलवे कर्मचारियों को संकेत मिल जाता है। इसी प्रकार जब ट्रेन आगे की तरफ सेंटिंग करती है, तो सफेद बत्ती का इस्तेमाल किया जाता है। लोकोमोटर पर दो सफेद और दो लाल लाइटों का इस्तेमाल किया जाता है।