दशरथ मांझी बन 250 महिलाओं ने इस गांव के तालाब में ऐसे बनाया रास्ता, पानी से खुशी की लहर

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250 Women In Madhya Pradesh Village Work For 18 Months, Dig Hill To Solve Water Shortage Problem. The women of Angrotha village worked hard for 18 months to cut a hill with the aim of creating a way for water to reach a pond inside the village.

Bhopal: किसी भी काम को पूरी मेहनत और लग्न से किया जाये तो कोई भी परिस्थिति उनके बीच बाधा नही बन सकती। महिला हर क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा रही है, कहते हैं यदि मन में तम्मना हो, तो पत्थर में फूल उगाए जा सकते हैं और पहाड़ को का-टकर भी पानी निकाला जा सकता है।

मध्यप्रदेश में छतरपुर जिले के बड़ामलहरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत भेल्दा के एक छोटे से गांव अंगरोठा में महिलाओं ने ऐसी मिसाल पेश कर दी जो सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गई। पानी के लिए पंचायत की 100 से ज्यादा महिलाओं ने मिलकर 107 मीटर लंबे पहाड़ को ही का-ट दिया। अब पूरे गांव को भरपूर पानी तो मिल ही रहा है, लोगों में ख़ुशी की लहर भी देखने मिल गई।

मध्यप्रदेश में छतरपुर के अगरोठा गांव में सिंचाई और जानवरों के पीने के लिए पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही थी। गांव के लोग बहुत परेशान होने लगे थे। बुंदेलखंड पैकेज के तहत अगरौठा गांव में तालाब तो बन गया था। लेकिन तालाब को भरने के लिए पानी नहीं था। जिससे परेशान गांव की महिलाओं ने मिलकर फैसला लिया की वो अब सरकार के भरोसे बैठकर ऐसे ही सभी को परेशान नही देखेंगी, नहर से तालाब तक पानी लाने का जिम्मा खुद ही उठेंगी।

तालाब के हर साल सुखे रहने के कारण महिलाओं ने परेशान होकर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने पर विचार किया। अंगरोठा गांव की 100 से ज्यादा महिलाओं ने जल संवर्धन के क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ मिलकर काम किया। तालाब में पानी भर सके इसलिए 107 मीटर लंबा पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का काम शुरू कर दिया।

उन्होंने अपने हौसले को मजबूत रखा काम बनाड़ नही किया एक दिन उन सभी की मेहनत रंग लाई और इस बार हुई बारिश से तालाब पूरी तरह भर गया। इतना ही नहीं पानी के लिए रास्ता बनने से गांव के कुओं और हेंडपंप में भी पानी आ चुका है।
महिलाओं की मेहनत और लग्न से इस बार हुई बारिश से तालाब पूरी तरह भर गया।

पहले पहाड़ों के जरिए बरसात का पानी बहकर निकल जाता था। इस पानी को सहेज कर महिलाओं ने गांव की दशा और दिशा बदल कर रख दी है। जानकारी के मुताबिक महिला बताती हैं कि दूर-दूर से 3 किलोमीटर पैदल चलकर महिलाएं यहां पर आती थीं और श्रमदान करती थीं।

महिलाओं ने इस पहाड़ को बचाने और इस पर पौधे लगाने का संकल्प भी लिया है। परमार्थ समिति के मानवेन्द्र सिंह ने बताया कि गांव की 100 से ज्यादा महिलाओं की मेहनत 18 महीने बाद रंग लाई है। इस बार हुई बारिश से पानी कहीं और बहने की बजाय तालाब में ठहर गया है।

महिलाओं ने इस इलाके में 400 पौधे भी लगाए हैं, जिनका संरक्षण भी कर रही है। तालाब के भरने से सूखी हुई बछेड़ी नदी में एक बार फिर से पानी बहने की आशा बंध गई है। बछेड़ी नदी में अब तक केवल बरसात में ही पानी आता था। बछेड़ी नही को नया जीवन मिल गया,गांव में एक बार फिर खुशी की लहर आ गई।

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