Saharsa: कृषि के क्षेत्र में एक नई क्रांति दिखाई पड़ रही है लोग पारंपरिक खेती के साथ-साथ आधुनिक खेती कर कृषि जगत को बढ़ावा दे रहे हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में कृषि ही एक मुख्य आय का स्रोत है, यहां के 75 प्रतिशत व्यक्ति खेती किसानी से अपना घर परिवार चला रहे हैं, परंतु जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी देखने मिल रही है।
लोग अधिक लागत में फसल उगाते हैं और आखिर में उन्हें उनकी लागत भी प्राप्त नहीं होती ऐसे में किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गई है, किसान (Farmer) आत्महत्या करने पर भी मजबूर हो गए हैं। समय के साथ परिवर्तन पृथ्वी का नियम है।
फल स्वरूप किसानों ने और कृषि विज्ञान के विशेषज्ञों ने एक रास्ता निकाला है जिसमें किसान अब पारंपरिक खेती के साथ आधुनिक खेती को जैविक तरीके से कर रहे हैं। किसानों को फल फूल और जड़ी बूटी की फसल उगाने में कम लागत पर अधिक मुनाफा मिल रहा है, जिसके चलते अब किसानों को एक नई राह मिली है।
पपीते के पेड़ ने इस गांव में लाई क्रांति
बिहार (Bihar) राज्य के अंतर्गत आने वाला जिला सहरसा (Saharsa) का कहरा प्रखंड क्षेत्र का बनगांव जहां के किसान भाई मोहमद सजबूल (Muhammad Sajbool) ने वैशाली जिले के उद्यान निदेशालय की तरफ से संचालित एजेंसी सेंट्रल एक्सीलेंट केसरी से रेड लेडी पपाया की नई नस्ल के 50 पौधे लगा कर पपीते की खेती प्रारंभ की।

सजबूल बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2022 के मार्च महीने में 50 फसलों को रोपित किया था। आज की स्थिति में यह पौधे फलदार वृक्षों में परिवर्तित हो गए हैं। उन्होंने वृक्षों को लगाने के बाद रखे जाने वाली सावधानी को और निर्देशों का भली भूत पालन किया है, जिस वजह से आज उनके वृक्ष काफी अच्छे और बेहतरीन फल दे रहे हैं।
6 महीने के भीतर लागत हो जाती है वापस
सजबूल बताते हैं कि वृक्षारोपण के 6 महीने बाद ही वृक्ष फल देने के लिए तैयार हो गए थे। उनका कहना है कि यह ऐसी फसल है कि 6 महीने के भीतर ही आपके द्वारा लगाया हुआ पैसा वापस हो जाता है और यह फसल मुनाफा देने के लिए तैयार हो जाती है।
सजबूल 6 महीने के भीतर 20 किलो पपीता (Papaya) उन 50 वृक्षों से प्राप्त कर लिया है और इतने फल प्राप्ति के बाद भी पपीते में दोबारा फल आना प्रारंभ हो गए हैं। मार्केट में पपीते का दाम भी काफी अच्छा मिल जाता है, जिस वजह से उन्हें दुगना लाभ हो रहा है।
सजबूल से प्रेरित होकर गांव और आसपास के गांव के अन्य किसान भी पपीते की खेती (Papeeta Ki Kheti) के लिए रुझान दे रहे हैं। कई किसानों ने तो पपीते की खेती प्रारंभ भी कर दी है और मुनाफा भी कमाने लगे हैं।
सजबूल ने बताया पपीते की फसल के बारे में
सजबूल ने अपने इंटरव्यू के दौरान बताया कि पपीते की एक पेड़ की हाइट करीब साडे 3 फीट होती है। इतनी हाइट के बाद पपीता आगे वृद्धि नहीं करते समय के साथ पपीता का पेड़ मजबूत होना चाहता है और उसके फल देने की क्षमता भी बढ़ती चली जाती है।

सजबूल का कहना है कि उन्होंने इस फसल के लिए 30000 RS का निवेश किया था और यह 30000 RS उन्होंने 6 महीने के भीतर ही कमा लिए थे। उन्होंने अपने 20 किलो पपीते 50 RS प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचे हैं। ऐसे उनकी लागत निकल गई है। अब जो नए फल आ रहे हैं वह सजबूल का मुनाफा है।
अधिकारियों ने कहीं यह बातें
उद्यान विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर राहुल रंजन का करना है कि रेड लेडी पपाया की नस्ल की जांच करने हेतु सिमरी बख्तियारपुर और कहरा ब्लॉक के कुछ किसानों में वितरित किया गया। 5 हेक्टेयर भूमि पर इन वृक्षों को लगाया जाना था।
पपीते के पेड़ (Papaya Tree) के लिए किसानों को एक पौधे का 6.5 रुपया सरकार को देना सुनिश्चित किया गया है। इसी के साथ किसानों को इस वृक्ष की फसल के लिए क्या सावधानी रखनी होती है, इसके लिए भी उन्हें प्रशिक्षित किया गया था और फसल में डालने के लिए जैविक खाद बीज सरकार की तरफ से दी गई थी।
कृषि विशेषज्ञों ने बताया था कि इस नस्ल के पौधे की अधिकतम ऊंचाई 3.5 फिट होती है और एक वृक्ष से अधिकतम 40 से 45 किलो फल प्राप्त किए जा सकते हैं। किसानों ने अधिकारियों की बात मानकर उनके दिशा निर्देश पर काम किया और आज वे इस फसल से अधिक से अधिक लाभ कमा रहे हैं।