आदिवासी इलाके में रोजगार नहीं था, स्टार्टअप शुरू कर आज महिलाएं बांस से ज्वेलरी बनाकर लाखों कमा रहीं

0
1560
Alwar Woman Startup
Rajasthan's Alwar Woman started a startup of home made things like chatai and tokari. An Awesome startup started by Alwar Woman and earning money.

Alwar: पहले आदिवासी गांव की स्थिति ये थी कि वँहा रोजगार मिलना बहुत कठिन काम था। खास तौर पर महिलाओं के लिए तो नामुमकिन सा था। लेकिन आज भारत इतनी तरक्की कर चुकी है। जिसमे महिलाओं का भी विशेष योगदान है। आज हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी जीत का परचम लहरा रही है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।

आज महिला भी हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन डाप्ने आपको साबित कर रही है कि वो भी किसी से कम नही है। आदिवासी गांव में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की आजादी नही होती थी। उनको ज्यादा शिक्षा भी नही दी जाती थी। कम उम्र में ही उनकी शादी करा दी जाती थी।

हिंदुस्तान में हुनरमंदों की कोई कमी नहीं है। बस आवश्यकता है, तो सही दिशा दिखाने की है। अपने हुनर के बलबूते पर गुजरात की आदिवासी महिलाएं अपनी नई पहचान बना रही है। राजस्थान के अलवर जिला निवासी सलोनी सचेती बांसुली की संस्थापक हैं।

2 वर्ष पहले उन्होंने गुजरात की आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर इस स्टार्टअप को प्रारंभ किया था। वे बांस की सहायता से ज्वेलरी और होमडेकोर वस्तुएं बनाकर पूरे देश के बाजारों में मार्केटिंग कर रही हैं। सालाना 15 लाख उनका कारोबार है। 35 से अधिक औरतो को उन्होंने रोजगार प्रदान किया है। हाल ही में फोर्ब्स अंडर 30 की लिस्ट में भी उन्हें स्थान मिला है।

सलोनी सचेती, राजस्थान के अलवर जिले में रह कर पली-बढ़ी, फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से बैचलर्स और BHU से लॉ की डिग्री प्राप्त की। इसके पश्चात उनकी नौकरी लग गई, लेकिन कार्य में मन नहीं लग रहा था। मैं सोशल सेक्टर में जाने की इच्छुक थी।

विभिन्न इलाकों पर मैंने इस सेक्टर में नौकरी की खोज भी प्रारंभ कर दी, लेकिन इसके अंतर्गत मुझे SBI की एक अध्येतावृत्ति (फेलोशिप) के बारे में पता चला, जिसमें ग्रामीण और सुनसान क्षेत्र में जाकर लोगों के बीच काम करना था। मेरी इसमें उत्तेजकता बढ़ी और मैंने फौरन फॉर्म भर दिया। कुछ दिनों पश्चात मेरा इंटरव्यू हुआ और मैं चयनित भी हो गई।

डांग जिला Story

डांग, गुजरात का सबसे छोटा जिला है, 90 फीसदी से अधिक आबादी आदिवासी है। चारों ओर घने जंगल, नदियां, पहाड़ और ऊपर से मनमोहक झरने। मन प्रफुल्लित हो उठा। खूबसूरती बिखेरने शायद हीकुदरत ने यहां कोई कसर छोड़ी हो परंतु इन सब में लोगों की गरीबी और तंगहाली मन को उदास कर रही थी।

यहां खेती ही लोगों के लिए सबकुछ था, परंतु पहाड़ी इलाका और बंजर जमीन होने के कारण उपज न के बराबर ही होती थी। अधिकतर लोग पलायन के लिए विवश थे। बच्चों और महिलाओं की दशा तो और भी नरम थी।

मुझे यहां कार्य करना था, लोगों का जीवन को बेहतर बनाना था। कार्य कठिन था लेकिन लोगों के हुनर को रास्ता दिखाना था। दरअसल यहां बांस की खेती बहुत अधिक होती है, चारो ओर आपको बांस देखने को मिल जाएंगे। इससे यहां की महिलाएं और पुरुष टोकरी, चटाई, जैसी तरह-तरह की चीजें बना रहे थे, लेकिन वे इसे प्रोफेशनल लेवल पर नहीं ले जा रहे थे, उन्हें बस एक दिन का दाना-पानी का बंदोबस्त हो जाए काफी था, इससे ज्यादा का वे नहीं सोचते थे।

इसलिए मैंने निर्णय लिया कि इनके हुनर को रंग दिया जाए, पहचान दी जाए। इनका हुनर ही इनके जीवन को बेहतर बना सकता है। मैंने गांव के लोगों से बात की शुरुआत में अधिकांश लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हुए, सिर्फ 4-5 औरतें ही राजी हुईं। इन्हीं महिलाओं के साथ मैंने बांस से ज्वेलरी बनना प्रारंभ की।

हमारा संकल्पना (concept) एकदम से नया तो नहीं था, नॉर्थ ईस्ट के प्रदेशों में इस तरह के वास्तु पहले से बन रहे थे, लेकिन हमारा काम अलग था, हमारी ज्वेलरी अनोखी थी। हमने ऐसी ज्वेलरी का निर्माण कीया जो रचनात्मक और खूबसूरत होने के साथ टिकाऊ भी हो अर्थात जल्दी खराब नहीं हो। ताकि लोग इसे लंबे समय तक उपयोग कर सकें। जो भी हमारा उत्पाद देखता था, वह इसका दीवाना हो जाता था, मेरे कई दोस्त और मुझे जानने वाले इसकी मांग करने लगे।

जल्द ही इसकी लोकप्रियता गुजरात के बाहर भी दिखने लगी। सलोनी कहती हैं कि बांस से बना उत्पाद आती टिकाऊ और मजबूत होता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिहाज से भी यह लाभकारी है। अब मैंने जयपुर में अपना कार्यालय खोल लिया है। मार्केटिंग का सब काम यहीं से होता है। जबकि निर्माण डांग जिले में होती है। वहां महिलाएं हमारे लिए उत्पाद तैयार करती हैं और वापस जयपुर भेज देती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here