Almora: दोस्तों उत्तराखंड से आ रही खबर के अनुसार अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत आने वाले पांडे खोला में खुटकुनी भैरव मंदिर के आसपास निर्माण कार्य चल रहा था। नगर पालिका यहां बहुत एहतियात से खुदाई का काम करवा रही थी क्योंकि, मंदिर काफी प्राचीन है। थोड़ी खुदाई के बाद यहां एक नौला देखने को मिला। तुरंत नौला की महत्वता को समझते हुए नगर पालिका ने पुरातत्व एक्सपर्ट डॉक्टर चंद्र सिंह चौहान को साइट विजिट पर बुलाया।
उन्होंने सर्वे को व्यापक तरीके से समझते हुए यह जानकारी साझा की कि, वास्तव में यह नौला करीब 30 साल पहले किसी परिस्थिति के चलते मलबे में दब गया था। परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो ये सैकड़ों साल पुराना है।
उसके आसपास पुरातत्व विशेषज्ञ ने निर्देश जारी किए सारी खुदाई को बहुत ही सावधानी से की जाए ताकि नौला का जो ऐतिहासिक स्वरूप एवं महत्व है, उसे पुनर्निर्माण कर वही गौरव प्रदान कर सकें। आपको बता दें उत्तराखंड (Uttarakhand) में नौला (Naula) पूजनीय स्थल होते हैं मंदिर की तरह।
नौला किसे कहते हैं और इनका महत्व
जो शायद आपने यह नौला शब्द पहली बार सुना होगा दरअसल ये उत्तराखंड की भाषा का एक शब्द है। इसका अर्थ है पहाड़ों के आस पास जमीन के नीचे से निकलने वाला कोई भी भूमिगत शुद्ध जल का स्त्रोत, बावड़ी भी कह सकते हैं।
नौला को यहां पर मंदिरों की तरह पवित्र एवं पूजनीय माना जाता है। इसलिए जहां भी इस तरह का जल स्त्रोत मिलता है, उसे पिछले कई सदियों से मंदिर की तरह ही व्यवस्थित वास्तु के अनुरूप बकायदा निर्माण किया जाता है।
जल का पीने एवं पूजा के लिए इस्तेमाल तो होता ही है, रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी इस जल का इस्तेमाल होता है, लेकिन उसके लिए नौला के अंदर एक अलग व्यवस्था की जाती है, ताकि नौला की पवित्रता बनी रहे।
कैसे बनाए जाते थे नौला एवं इनका वास्तु
नौला को किसी मंदिर (Temple) के वास्तु और शिल्प के अनुसार ही बनाया जाता है। बकायदा किसी मंदिर की तरह इसमें गोल पिलर होते हैं, पहाड़ी शिल्पकार की कला से पत्थर को ढालकर इसका छत बनाया जाता है।
धरती से निकलने वाले जल स्रोत के ऊपर यज्ञ के ढांचे को उलटी दिशा में लगाया जाता है। जो नीचे से चौड़ा और सीढ़ीदार होते हुए क्रमशः ऊपर आते-आते एकदम सकरा हो जाता है। जिससे सिर्फ पानी की धार बाहर आ सके। वहीं नौला में एक मंदिर के तरह गर्भ गृह भी होता है।
The traditional water conservation methods .
Himachal Pradesh = Kuhls
Uttarakhand = Naula
Ladakh = ZingKuhls are a traditional irrigation system in the lower belt area's like Kangra, Mandi & Hamirpur. A community kuhl can serve 6-30 farmers, irrigating an area of about 20 ha. pic.twitter.com/zhfJCnME1p
— justiceforkashmiriHindus (@Himalayas_123) June 2, 2021
इसकी दीवारों में सर्प, कलाशधारिनी, अश्व, द्वारपाल, अप्सराएं पूजा करती हुई, पक्षी की मूर्तियां उकेरी गई हैं। बहुत से नौला में आपको गणेश भगवान की प्रतिमा भी स्थापित मिलेगी। वरुण देव जो जल के देवता हैं, उनकी स्थापना भी की जाती है जिससे नौला के जल की पवित्रता सदैव बनी रहे।
उत्तराखंड में स्थित है सातवीं शताब्दी से पुराने नौला
नौला के ऐतिहासिक महत्व की हम बात करें तो, डॉ मोहन चंद तिवारी के अनुसार नौला की शुरूआत सातवीं शताब्दी में कत्यारी राजाओं के द्वारा की गई थी। इन्होंने जल विज्ञान के अनुसार नौला का निर्माण किया ताकि सदियों तक ये स्त्रोत पवित्र रहे।
Naulaa (नौला) is equivalent of बावड़ी in Uttarakhand … this one, constructed by the contemporary local ruler, still holds crystal clear water pic.twitter.com/5ffyuC6sZA
— Antithesis (@_antithesis_1) September 11, 2019
क्रमशः इसके बाद 12 वीं शताब्दी एवं चौदहवीं शताब्दी में शोरचंद राजाओं ने नए नौला का निर्माण करवाया जिनकी इतिहास में पुख्ता जानकारी मिलती है। कुछ नौला का महत्व तो आप इससे समझ सकते हैं कि उनकी दीवारों पर भगवान विष्णु के दशावतार की प्रतिमाएं उकेरी गई है।
सरकार ने इस नौला को घोषित किया राष्ट्रीय संपत्ति
उत्तराखंड में आपको ढेर सारे नौला देखने मिलेंगे, जिनमें चंपावत का हथिया नौला, नाग नौला, बालेश्वर नौला, एवं गगोलिहाट का जान्हवी नौला जो अपने विशेष वास्तु कला के लिए प्रसिद्ध है। वहीं अल्मोड़ा में स्थित एक स्यूनराकोट नौला को सरकार ने उसके ऐतिहासिक महत्व वास्तु सुंदरता को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया है।
आप जब भी अल्मोड़ा घूमने जाएं तो नौला दर्शन अवश्य करें। यह हमारे देश की वह धरोहर है जिससे ज्ञात होता है कि, हमें जल विज्ञान का भी कितना गहरा ज्ञान था। क्योंकि आज सदियों के बाद भी यह नौला उतने ही पवित्र जल हमें दे रहे हैं।