कभी यह शब्द तंज कसने के लिए इस्तेमाल होता था, अब शख्स ने इसे चमार ब्रांड बना दिया: Chamar Brand Story

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CHAMAR Brand Sudheer Rajbhar
Success Story of CHAMAR Brand of Sudheer Rajbhar. An Artist's Fight Against Caste Bias With Sustainable Fashion Brand, Chamar Studio.

Jaunpur: जातिवाद मानवों के द्वारा बनाया गया एक ढोंग है, जो इंसान जो काम करता है, उसे उस जाति का बना ही दिया जाता है। यदि देखा जाए तो दुनिया में हर काम जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति साफ सफाई करता है, तो उसे नीची जात में रखा जाता है, जो पूजा पाठ करवाता है, उसे पंडित अर्थात उची जात का व्यक्ति कहा जाता है।

यह ढोंग वर्षों से समाज में चली आ रही, परंतु आधुनिकता के चलते लोगों ने जातिवाद से निकलना प्रारंभ कर दिया है, परंतु आज भी देश के कई कोनों में जातिवाद चल रहा है। लोग अपनी से छोटी जाति के लोगों से परहेज करते हैं, उनसे छुआछूत मानते हैं।

यह प्रथा ग्रामीण इलाकों में ज्यादा देखी जाती है परंतु समाज में अब यह जात भी उच्च दर्जा रखने लगी है। चमार शब्द लोग जाति और तंज के लिए प्रयोग करते हैं, परंतु आज यही शब्द एक ब्रांड बन कर उभरा है, तो आइए इस लेख के माध्यम से जाने की क्या है इसके पीछे का सच।

चिढ़ को ही बना लिया हथियार

जैसे-जैसे देश में प्रगति हो रही है वैसे वैसे लोगों का मानना है कि देश में समाज की सोच में परिवर्तन ला सकें और जातिवाद को खत्म कर सकें। कहीं-कहीं लोगों ने इसे माना भी है, परंतु लोगों के मन में आज भी कहीं ना कहीं यह बात रहती है।

वे चाहते हैं कि देश से जातिवाद खत्म हो जाए, परंतु आम आदमी के पास इस का कोई तोड़ नहीं है, इसीलिए कहते हैं, जो इस परिस्थिति से गुजरता है, उसे ही इस अपमान का एहसास होता है।

इस अपमान को सुधीर राजभर (Sudheer Rajbhar) ने काफी ज्यादा झेला है, इसीलिए उन्होंने इस अपमान को खत्म करने की ठानी लोग उन्हें भरे या चमार कहकर काफी ज्यादा जलील करते थे। परंतु उन्होंने चमार को एक ब्रांड बनाया। वे बैग और बेल्ट बनाते है, जो पूरी तरह इको फ्रेंडली है और हस्तकला का परिचय देते हैं।

गांव के लोग जाति को लेकर ताने मारते थे

उत्तर प्रदेश राज्य के जौनपुर के रहने वाले सुधीर राजभर की उम्र करीब 36 वर्ष है। उनका जन्म तो जौनपुर (Jaunpur) में हुआ था, परंतु उनका पालन पोषण मुंबई में हुआ वह गांव बहुत ही कम जाते थे। मुंबई से ही उन्होंने अपनी सारी शिक्षा प्राप्त की और ड्राइंग और पेंटिंग में ग्रेजुएशन किया।

जब भी सुधीर अपने गांव गए हैं, तभी वहां के लोगों ने उन्हें उनकी जाति पर ताने मारने शुरू कर दिए। उन्हें काफी अपमानजनक महसूस होता था, तभी उन्होंने ठान लिया था कि वे चमार शब्द के प्रति सम्मान वापस लाएंगे। सबसे पहले तो उन्होंने चमार को ब्रांड बनाया। फिर उस ब्रांड में इस जाति से संबंधित काम यानी चमड़े का काम उन्होंने चुना और इस पर काम करना शुरू कर दिया।

धारावी से हुई शुरुआत

सुधीर ने एशिया की सबसे बड़ी जोगी बस्ती जिसका नाम धारवी है, वहां पर उसने एक स्टूडियो खोला, जिसका नाम चमार स्टूडियो था। ऐसे स्टूडियो के अंदर सुधीर ने अनुसूचित जाति और मुस्लिम वर्ग के लोगों को रोजगार दिया।

पहले तो सुधीर ने कपड़े से निर्मित बैगों को बनाना प्रारंभ किया, परंतु बाद में जब उसने चमार शब्द के उत्थान के बारे में सोचा, तो अपने काम को उस और मोड़ दिया।

लोगों को चमार शब्द समझाने के लिए उसने चमड़े से निर्मित वस्तुओं को बनाना प्रारंभ किया और लोगों को संदेश दिया कि चमार (Chamar) एक जाति नहीं, बल्कि एक पेशा है। सुधीर के द्वारा निर्मित प्रोडक्ट न केवल छोटे स्टोर में बल्कि बड़े बड़े शोरूम के साथ ऑनलाइन भी बिक्री (Online Selling) होते हैं।

विदेशों तक है इस ब्रांड (Chamar Brand) की पहुंच

सुधीर के द्वारा निर्मित प्रोडक्ट भारत के कई राज्यों सहित विदेश के कई देशों में भी भेजे जा रहे हैं। अमेरिका जर्मनी जापान जैसे देश ऑनलाइन ही इन प्रोडक्ट को खरीदते हैं। अभी तक इन प्रोडक्ट को केवल ऑनलाइन माध्यम से ही खरीदा जा रहा है, परंतु बहुत जल्द सुधीर इन ब्रांडों की बिक्री के लिए एक स्टोर खोलने वाले हैं।

इसके अलावा सुधीर ने चमार हवेली (Chamar Haveli) नाम से राजस्थान में एक 300 वर्ष पुरानी हवेली खरीदी है। अभी वे उस हवेली की मरम्मत करवा रहे हैं, जिससे एक समय बाद वे इस हवेली को आर्किटेक्ट के रोकने के लिए शानदार जगह में तब्दील कर देंगे।

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