भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सैनानी लाला लाजपत राय के पुश्तैनी घर की ऐसी हालत आपको हैरान कर देगी

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Lala Lajpat Rai old haveli
Lala Lajpat Rai's house faces blows of time and neglect in Ludhiana. Lala Lajpat Rai old haveli house condition right now.

Ludhiana: लाला लाजपत राय, जिन्हे हम पंजाब केशरी के नाम से जानते है। लाला लाजपत राय जी ने स्वतंत्रता की लडाई में अपना योगदान दिया था। लाला लाजपत राय उन नामों में से एक है जिन्होने स्वतंत्रता की लडाई लड़ते हुए अंग्रेजो की लाठी खाई है। ‘भारत देश हमारा है’ का नारा लगाते हुए और आजादी की लडाई लड़ते हुए इन्होंने अपनी जान गंवा दी।

ऐसे महान इंसान की एक पुरानी हवेली (Old Haveli) है। जिसकी हालत ऐसी हो गई है, की वो कभी भी गिर सकता है। आज हम इस पोस्ट से पुरानी हवेली के विषय मे मिली जानकारी साझा करेंगे। वैसे भी पुरानी हवेलियां अपने आप में बहुत राज और कहानियां समेटे रहती हैं।

हवेली (पुस्तेनी घर) की हालत है खराब

28 जनवरी 1865 को जन्मे लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) एक स्वतंत्रता सेनानी (Freedom fighter) रहे है। इनका पुश्तैनी मकान पंजाब के मिसरपुरा, जागरव मे बसा हुआ है। स्वतंत्रता सेनानी का मकान एक राष्ट्रीय धरोहर के समान होता है। इसकी हिफाजत करना हमारा और हमारी सरकार का फर्ज है। इसकी हिफाजत हमे करनी चाहिए थी।

हमारे लिए शर्म की बात है कि हम इस धरोहर की अच्छे से देखभाल नहीं कर पाए। जिन्होने हमारे पैसे सुरक्षित रखने के लिए पंजाब नेशनल बैंक तथा लक्ष्मी बीमा पॉलिसी की शुरुआत की। उसके लिए हम इतना तो कर ही सकते थे। लाला जी के मकान की हालात कुछ इस प्रकार है की दीवारों का पेंट निकल चुका है और दरारें भी आईं हैं।

इसी पुश्तैनी मकान में बीता था लाला लाजपत राय जी का बचपन

ये मकान लाला लाजपत राय जी के पिताजी ने उनके लिए बनवाया था। उनके गांव के लोग लाला लाजपत राय जी को लाला जी कहकर संबोधित करते थे। उनका पूरा बचपन इसी पुश्तैनी मकान में गुजरा और आज इस मकान की जो हालत है वो दयनीय है। इसी मकान में रहते हुए उनके मन में अपने देश के लिए कुर्बान होने का ख्याल आया था।

लाला जी के पिताजी ने इस मकान को सन् 1845 में खड़ा किया था। अगर इस मकान की देखभाल अच्छे से किया गया होता, तो आज मकान की दशा इतनी खराब नही हुई होती। लाला लाजपत राय जी ने साइमन कमीशन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। जिसके चलते उन्हें लाठी चार्ज की मार सहन करना पड़ा। 17 नवंबर 1928 में लाला जी ने इस संघर्ष भरी जिंदगी को अलविदा कहां।

पुश्तैनी मकान और लाइब्रेरी दोनों का रिनोवेशन (Renovetion) करने की है आवश्यकता

पुस्तकालय में कार्यरत एक सज्जन व्यक्ति ने बताया की पुस्तकालय और मकान दोनो की मरम्मत का कार्य शुरू किया गया था। परन्तु इसे जल्द ही बंद कर दिया गया। दिवारो में दरार पड़ रही है तथा डिस्टेंपर के छीलटे निकल रहे हैं।

वह बताते है कि दरारो को भरने का कार्य किया गया था। परन्तु सीमेंट कच्चा लगाया गया था। पुस्तकालय का भी वही हाल है। वर्करो द्वारा पेंचवर्क (Pench Work) चटापट्टी कार्य किया गया है। पेंचवर्क अथवा चटापट्टी राजस्थान (Rajasthan) की एक प्रसिद्ध कला है। जिसमे कपड़ो को काटकर डिजाइन तैयार किया जाता है।

दिवारों पर किया गया ये कार्य देखने में तो अच्छा लगता है, किन्तु दीवार को मजबूती नहीं दे सकता। किसी भी मकान को घर उसमे रहने वाले लोग बनाते हैं। लाला जी का मकान भी घर था। लेकिन तब तक जब तक लाला जी थे। अब तो बस उनकी यादों के तौर पर इनका कुछ सामान रह गया है।

आज भी लाला जी के उपयोग में लाई गई वस्तु है उनके मकान में

लाला जी के घर मे एक कोने में लटकती दीवार घड़ी दिखाई देती है। जिस कुर्सी पर वह बैठा करते थे, वो कुर्सी आज भी वहां मौजूद है। जिस बिस्तर पर सोते थे, वो बिस्तर तथा कुछ बर्तन भी वहां है।

जिनका उपयोग लाला जी ने लिया था। लाला जी की वस्तुओ को हमने संजोके तो रखा है। परंतु उसका ख्याल नही रख पा रहे है। तभी तो समान एवम घर के कोनो में से गंदी स्मैल (Smell) आती है। सरकार को इस ओर ध्यान देना आवश्यकता है।

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