बिहार की बावन बूटी साड़ी को GI टैग मिलेगा, विश्वस्तर पर छाने को है तैयार, इससे यह लाभ होगा

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Bawan Buti saree
GI tag likely for 'Bawan Buti' saree in Bihar. Bihar Nalanda's Bawan Buti sarees will get Geographical Indications GI tag soon.

Photo Credits: Twitter

Nalanda: भारत देश में महिलाओं का पारंपरिक पहनावा साड़ी है और पुरुषों का धोती कुर्ता। भारत के हर राज्य में कुछ अलग तरह की साड़ी पहनी जाती है। सभी साड़ियों की अलग अलग पहचान है। और उनकी कारीगरी भी। जैसे साऊथ में कांजीवरम साड़ी विख्यात है।

बनारस की बनारसी साड़ी, बिहार की बाबन बूटी साड़ी, मध्यप्रदेश के चंदेरी की साड़ी इन सभी को जीआई टैग प्राप्त है। महिलाओं के लिए उनका साज श्रृंगार काफी अनमोल है और वे तरह तरह की साड़ी खूब पसंद करती है। इन साड़ियों को देश के हर क्षेत्र के बुनकर बनाते है।

आपको बता दें कि बिहार (Bihar) की बाबन बुटी साड़ी (Bawan Buti Sari) के लिए जीआई टैग (GI Tag) प्रस्तावित है। काफी लंबे समय से चली आ रही परंपरागत साड़ी को अब एक नई पहचान मिलने जा रही है, जिससे बिहार के बुनकरों में काफी उत्साह है और वे बेहद ख़ुश है। क्योंकि उन्हें इस टैग से काफी फायदा होने वाला है और उनके वर्षो की मेहनत का परिणाम मिलने जा रहा है, तो आइए जानते है इस बाबन बूटी साड़ी की विशेषता।

बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग देने की कार्यवाही प्रारम्भ हो चुकी है

बिहार राज्य के नालंदा (Nalanda) जिले में बनने वाली बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग (Bawan Buti Saree For GI Tag) देने की घोषणा हो चुकी है। अब इस साड़ी को देश विदेश में अपनी एक अलग पहचान मिलेगी। आपको बता दे की बिहार राज्य के नालंदा जिला के अंतर्गत आने वाला एक गांव नेपुरा कई वर्षो से हस्तकरघा कला और व्यवसाय के लिए काफी फेमस है।

इस गांव के हर घर में सबकी पसंद बावनबूटी की साड़ी, तसर एवं कॉटन से बनाई जाती है। नालंदा अपने हस्तकरघा कला के लिए काफी प्रसिद्ध है और बहुत जल्द पुरानी परंपरागत बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग मिलने की आशा है।

नाबार्ड की तरफ से इस साड़ी को जीआई टैग दिया जा रहा है। इस जीआईं टैग के मिलने के बाद यह साड़ी देश विदेश में मशहूर हो जाएगी जिससे बुनकरों के लिए काफी फायदेमंद होगा। जब इस साड़ी की मांग बढ़ेगी तो बुनकरों की आय भी बढ़ जाएगी।

नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक मिस्टर अमृत कुमार बरनवाल कहते है कि इस बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग देने की प्रोसेस प्रारम्भ हो गई है। इसमें साड़ी की उत्पाद और गुणवत्ता की जांच हो रही है। अमृत कुमार बताते है कि बावन बूटी की इस हस्तकरघा से बनी डिजाइन को नाबार्ड के क्षेत्रीय बिहार कार्यालय में दिनांक 12 मई को जी आई रजिस्ट्री के लिए आवेदन दिया गया है।

बुनकरों को पुरे देश और विदेश में एक ग्लोवल पहचान मिलेगी

नाबार्ड अपनी तरफ से काफी प्रयास कर रहा है। कि जल्द से जल्द बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग मिल सके। जीआई टैग प्राप्त होने से नालंदा जिले के बुनकर को देश विदेश में ग्लोबल पहचान मिल सकेगी। इसके साथ ही जीआई का एक लोगो भी दिया जाएगा। जिससे वे अपने द्वारा निर्मित उत्पाद को देश विदेश में भी निर्यात कर सकेंगे।

बिहार के जिला विकास प्रबंधक बताते है, बिना जीआई टैग के बुनकर को अपने उत्पाद के लिये अच्छा दाम नहीं मिल रहा था। जीआई टैग मिलने के बाद बुनकर अपनी कला के दम से अपनी एक पहचान बना सकेंगे और एक आत्मनिर्भर व्यवसाय कर सकेंगे।

बावनबूटी साड़ी का नाम किस प्रकार दिया गया

नालंदा के बुनकरों से बात करके पता लगा की इस साड़ी का नाम किस तरह पड़ा। नेपुरा के बुनकर अजीत कुमार, जितेंद्र कुमार तांती और अखिलेश कुमार ने बातचीत के दौरान बताया कि नेपुरागांव की इस साड़ी की अलग ही पहचान है।

बावनबूटी हस्तकला की बहुत पुरानी कारीगरी है। इस साड़ी में साधारण कपडे पर हाथों से बुनकर धागे की बहुत बारीक़ बूटी डाली जाती है। हर डिजाइन में एक ही बूटी का प्रयोग कर 52 बार डाली जाती है। 52 बार बूटिया डालने की वजह से इस साड़ी का नाम बावनबूटी पड़ा।

इस जीआई टैग से बुनकरों के चहरो पर ख़ुशी आ गई

एक इंटरव्यू में नेपुरा के बुनकरों ने बताया कि पहले के समय में नेपुरा गांव में कम से कम 70 से 75 घरो में यह हथकरघा का काम किया जाता था। परंतु बाजार में मांग न होने से धीरे धीरे काम कम होते गया़।

अब वर्तमान में केवल 35 से 40 घर ही रह गये है, जहां महिलाएं धागे निकालने का कार्य करती है और पुरुष बुनाई करते हैं। धीरे धीरे समय के साथ यह कला विलुप्त होते जा रही है। अब जीआई टैग मिलने से बुनकर बेहद खुश है। जीआई टैग मिलने से अब विहार के बुनकर देश विदेश में अपने द्वारा निर्मित प्रोडक्ट बेच सकेंगे़।

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