कोरोना काल में दिव्यांगजनों का मसीहा बनी ये द्रष्टिहीन बेटी, सभी ने सराहा

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Tiffany Brar:
Tiffany Brar bags Holman Prize 2020. Tiffany Brar This Kerala-based visually-challenged activist. Story of Tiffany Brar: Ek Number News.

Photo Credits: Social Media

Delhi: टिफनी बरार खुद एक द्रष्टिबाधित सामाजिक कार्यकर्ता हैं और कोरोना काल में अपनी संस्था के जरिये दिव्यांगजनों की लगातार सहायता कर रही हैं। टिफ़नी बराड़ ने कोविड से ठीक होने के बाद अभी अपना क्वारंटाइन पूरा किया है। लेकिन उनका दिल उन विकलांग लोगों के लिए जाता है, जिनके पास इस कठिन समय में रूम क्वारंटाइन के लिए आवश्यक सुविधाएं नहीं हो सकती हैं।

तिरुवनंतपुरम स्थित दृष्टिबाधित विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता के लिए वास्तव में पता है कि काम करना कितना कठिन है, फिर भी वो कभी हार नही मानती। कोरोना महामारी से सभी का दिल दहल गया है, लेकिन इस दौरान दिव्यांगजनों और खासकर दृष्टिबाधितजनों को बेहद मुश्किल समय और परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ रहा है, मालूम हो कि इस कठिन दौर में ऐसे लोगों की मदद के लिए एक महिला लगातार प्रयासरत है।

टिफनी बरार खुद एक दृष्टिबाधित सामाजिक कार्यकर्ता हैं और कोरोना काल में अपनी संस्था के जरिये दिव्यांगजनों की लगातार सहायता के लिए आगे रहती है, टिफनी को उनके कामों के लिए यूं तो अनेको पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, इसी के साथ साल 2017 में उन्हे देश के राष्ट्रपति के हाथों ‘बेस्ट रोल मॉडल’ के नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।

टिफनी ने दिव्यांगजनों की सहायता के उद्देश्य से साल 2015 में ज्योतिर्गमय फाउंडेशन की नीव रखी थी। यह संस्था मूल रूप से दृष्टिबाधितजनों को Mobile Phone, कंप्यूटर और सोशल मीडिया का प्रयोग करना सिखाती है। इससे भी अभिक जब कोरोना महामारी ने भारत में अपने रंग दिखाने लगा था, तब संस्था ने दिव्यांगजनों को मानसिक हालत पर भी कंसल्टेशन उपलब्ध कराना प्रारम्भ कर दिया।

खबरों के मुताबिक टिफनी का कहना है कि चाहें कोरोना हो या न हो, लेकिन इस तरह की लॉकडाउन वाली स्थिति में आवश्यक वस्तुओं तक पहुँचने के लिए दिव्यांगजन हर परिस्थिति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उन्हे ऐसे में सहायता की आवश्यकता होती है।

टिफनी इसी साल अप्रैल में स्वयं भी कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आ गई थीं, हालांकि इस दौरान उनके परिवार ने उनका पूरा ध्यान रखा, जिसके बाद वह बहुत जल्द ठीक हो गईं। टिफनी का कहना है कि ऐसे बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हर कोई उनकी तरह भाग्यशाली नहीं होता है।

टिफनी को एक पुरस्कार नेपाल के डॉ बीरेंद्र राज शर्मा पोखरेल और यूएसए के टायलर मेरेन को दुनिया का पता लगाने और अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए भी दिया गया था। यह प्रयास उन लोगों का जश्न मनाता है जो अपने भविष्य को अपने लिए निर्धारित करने के बजाय खुद बनाना चाहते हैं। यह पुरस्कार जेम्स होल्मन के नाम पर दिया गया, जो विक्टोरियन युग के साहसी और लेखक थे और साथ ही दुनिया का चक्कर लगाने वाले पहले नेत्रहीन व्यक्ति भी थे।

टिफ़नी की होल्मन महत्वाकांक्षा को “अनरीच्ड तक पहुंचना” कहा जाता है। इस कठिन दौर में आम लोगों के भीतर जो दिव्यांगजनों को लेकर एक झिझक भरी हुई है उसपर बात करते हुए टिफनी कहती हैं कि कोरोना काल में कोई भी एक दूसरे को छूना नहीं चाहता है, लेकिन दृष्टिबाधित लोगों की मदद अधिकतर छूकर ही करनी पड़ती है, ऐसे में लोग उनकी मदद करने में झिझक जाते हैं।

इस बारे में सुझाव देते हुए टिफनी कहती हैं कि यदि दिव्यांगजनों और दृष्टिबाधित लोगों को कोरोना संक्रमण हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में सामाजिक संस्थाओं को उन लोगों को किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिए जहां ऐसे लोगों को इलाज के साथ ही उनकी देखभाल में सहयोग मिल सके। सरकार को भी चाहिए कि वह इस तरह दिव्यांगजनों और दृष्टिबाधित लोगों की मदद कर रहे लोगों को आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करे।

देश में कोरोना के बढ़े हुए प्रकोप पर बात करते हुए टिफनी कहती हैं कि आज लोग सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन कर रहे हैं, लेकिन फिर भी बड़ी तादाद में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन नियमो को नहीं मान रहे हैं, ऐसे लोगों को बुनियादी बातों के बारे में जान लेना बेहद आवश्यक है कि बिना सोशल डिस्टेन्सिंग और मास्क के हम इस महामारी से पार नहीं पा सकते हैं।

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