
Shimla: हमें अक्सर ही यह लगता है कि लोग रिटायर होने के बाद मे आराम करते है और अपने अंतिम दिनो में काम से दूरी बना लेते है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है, जिन्हें रिटायर होने के बाद भी कुछ ना कुछ नया करने का मन होता है। कुछ ऐसा ही रिटायर्ड एक प्रोफेसर (Retired Professor) ने किया है।
आज हम बात करेंगे अशोक गोस्वामी की जोकि एक रिटायरर्ड प्रोफेसर है। इन्होने कई वर्ष मेहनत करके 20 बीघा जमीन पर बगीचे की खेती की है। अशोक गोस्वामी (Ashok Goswami) जी ने 20 अलग अलग प्रकार के फलो का बगीचा लगाया है।
उन्होंने अपनी मेहनत से 20 बीघा जमीन को हरा भरा कर दिया। उन्होने इस जमीन में प्राकृतिक तरीके से खेती (Natural Farming) की तथा विभिन्न प्रकार के फल, सब्जी तथा अनाज को उत्पादित किया। आज अशोक भले ही रिटायर्ड हो चुके है, लेकिन वह कभी खाली नहीं बैठते वह अपना पूरा समय अपने ही फार्म में बिताते है।
रिटायर्ड अशोक गोस्वामी जिन्होने 20 बीघा जमीन पर लगाये 20 प्रकार के फलदार पौधे
अशोक जी का मन पूरी तरह से अब खेती को अपनाने का है, यही कारण है कि अब उन्होने देसी गाय भी खरीद ली है। वही उन्होंने प्राकृतिक धार्मिक पर्यटन स्थल प्रसिद्ध बैजनाथ को भी टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने के उद्देश्य से पहल कर दी है।
अशोक जी को प्राकृतिक तरीके से फॉर्म को टूरिस्ट का मॉडल बनाने से काफी अच्छा रिजल्ट भी मिला है। जो हिमाचल कृषि विभाग है, उसके हिसाब से फार्म में लगभग 20 प्रकार के पौधे लगे है जोकि फलदार है।
इन सभी में फल आना भी शुरू हो चुके है। वह बताते हे कि उनके फार्म में काफी दूर दूर से लोग आते है जोकि उनके काम की सराहना करते है। इसी कारण से अशोक जी ने अपने फार्म को नेचूरल ए्ग्रोटूरिज्म नाम दिया है।
प्राकृतिक खेती जोकि है केमिकल फ्री एग्री सिस्टम
अगर प्राकृतिक खेती की हम बात करे तो यह एक प्रकार से केमिकल फ्री एग्री का सिस्टम है। जिसमें इको सिस्टम, ऑन फार्म संसाधन को अनूकूल तथा आधुनिक समृद्ध रखा जाता है। इसमें उपयोग होने वाले सभी संसाधन रीसाइक्लिंग योग्य भी होते है।
इस प्रणाली को एग्री इकोसिस्टम पर आधारित एग्री कृषि प्रणाली माना जाता है। इस प्रणाली में फसल के साथ साथ पेड़, पौधे, तथा पशुधन भी एकीकृत रूप में होता है। अगर हम प्राकृतिक खेती के बारे में बात करे तो इसके खेती में काफी फायदे है।
प्राकृतिक खेती के फायदे तथा उददेश्य को जाने
इससे खेत से जो मिट्टी होती है वह बहाल रहती है। इससे विविधता बनी रहती है। वही पशु कल्याण भी सुनिश्चित होता है। यह स्थानीय तथा प्राकृतिक संसाधनो का कुशलता पूर्वक उपयोग करने पर जोर देता है। इस विधि से मिट्टी की सभी जैविक गतिविधि भी प्रोत्साहित होती है। इसमें खाद्य तथा पौधो व जानवर की विविधता का प्रबंधन अच्छे से होता है।
अगर उद्देश्य की बात करे तो इस विधि का मुख्य मकसद लागत को कम करना, पैदावार बढ़ाना, जोखिम कम करना, अंतर फसल द्वारा किसान की आय को बढ़ाना है। इस खेती विधि को आप महत्वकांझी विधि भी कह सकते है।
साढ़े सात लाख लागत में ढाई लाख की हुई कमाई
अगर इस प्राकृतिक खेती की मदद से होने वाले फायदे की बात करे तो प्रोफेसर अशोक जी इस खेती की मदद से बहुत ही कम खर्च करके काफी अधिक मुनाफा कमा (Earning Profit) लेते है। उनकी अगर बात की जाये तो उन्होंने अदरक, लहसुन, प्याज, धनिया मटर, तथा खीरा यह सब अपने 20 बीघा जमीन पर लगाया। इन सब को लगाने पर अशोक जी को खर्चा लगभग साढ़े सात हजार का हुआ।

वही अगर मुनाफे की बात करे तो वह उनको पूरे 2.5 लाख रूपये को हुआ। जिसे देखकर हम कह सकते है कि किसानो का रूख अब परंपरारत अनाज की खेती से हटकर फल, सब्जी इत्यादि की ओर होना चाहिए। ताकि उनकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो जाये। प्राकृतिक खेती में भी किसानो को जोर देना चाहिए की वह मिश्रित खेती को अपनाये। ताकि उनको कम समय में काफी अधिक मुनाफा पहुँचे।