गोबर से लकड़ी निर्मित करने वाली मशीन बनाने वाले शख्श ने अब बनायी गोबर सुखाने वाली मशीन

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Gobar Machine
Innovator Kartik Paul makes Cow Dung Dryer Machine. Gobar innovation Of Patiala Boy Kartik Paul makes money from Cow Dung Gobar. Automatic Cow Dung Log Making Machine innovation in Hindi

Patiala: हमारे देश में खेती और मवेशी पालन का काम प्राचीन काल से ही किया जा रहा है और अभी भी निरंतर ज़ारी है। मवेशी पालन का मतलब है को खेती किसानी में मदतगार पालतू जानवर (Pet Animals) और दूध देने वाली गाये और बैल। भारत के हर गाँव और शहर में ईद जानवरों की भरमार है। इसके अलावा, मवेशियों का गोबर भी कई कामों में उपयोगी होता है।

इतने सारे गोबर का क्या क्या इस्तेमाल करें और कहाँ टिकाने लगाएं, यह सबसे बड़ा सवाल होता है। हमारे देश में गौशाला (Gaushala) भी बहुत हैं और यहाँ गोबर का ढेर लग जाता है। ऐसे में इतने सारे गोबर का क्या किया जाएँ, इसकी तरकीब देश के एक युवा शख्स ने निकाल दी है।

अगर आप मवेशियों के गोबर को अच्छे से उपयोग में लायेंगें, तो यह खेतों में खाद बनाने, बायो गैस बनाने और लीपने-पोतने तक के काम आ सकता है। गोबर (Cow Dung) की इन्ही उपयोगितों को देखकर पंजाब के 31 साल के युवा कार्तिक पाल (Kartik Paul) ने गोबर का इस्तेमाल करने के लिए तीन आविष्कार (Innovation) कर दिए हैं।

कार्तिक ने साल 2017 में गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाई (Machine) थी। जो की एक इनोवेशन था। फिर सोशल मीडिया में वे और उनका यह अविष्कार इतना पसंद किया गया और वायरल हुआ की देशभर में अभी तक वे 9000 के अधिक गोबर मशीनें बेच चुके हैं। किसानो को गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन से बहुत फायदा हुआ।

यह खाना बनाने के काम आती है और एक सस्ता ईंधन है। कुछ लोग इसे बनाकर बेचकर अपनी आजीविका भी चला रहे हैं। इसके बाद, इसी साल कार्तिक ने गोबर सुखाने की मशीन (Cow Dung Dryer Machine) भी बना दी है, जो कुछ ही मिनटों में गीले गोबर से पानी अलग करके पाउडर बना देती है। यह भी बहुत कारगर है।

अब हाल ही में उन्होंने एक तीसरा अविष्कार भी किया है। इस इनोवेटर ने एक उतीसरी मशीन बनाई है, जिसे गोबर उठाने की ऑटोमैटिक मशीन (Automatic Machine) कहा गया है। अभी यह मार्किट में नहीं आई है, इस पर अभी काम चल रहा है। फिलहाल कार्तिक ने अपनी दोनों मशीनों को बेचकर, बहुत आमदनी की है। उन्होंने अपने द्वारा स्थापित कंपनी के टर्नओवर को करोड़ों रुपये तक ला दिया है।

बता दें की कार्तिक एक बड़े लिखे नौजवान हैं। वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके है। पंजाब के पटियाला में उनकी ‘गुरुदेव शक्ति’ (Gurudev Shakti) नाम की कंपनी है, जहां वह चारा काटने का चाफ कटर और किसानो के लिए खेतों में उपयोग होने वाले जनरेटर बनाते हैं।

कर्तिक ने एक अख़बार को बताया की उनको शुरुआत में इस काम में बिल्कुल इंट्रेस्ट नहीं था। साल 2014 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद, उन्हें कनाडा जाना था। लेकिन उनके पिता ऐसा नहीं चाहते थ। पिता का कहना तह की भारत में रहकर ही कुछ करों। फिर वे अपने पिता के साथ काम पर लग गये। उनके पिता भी खेती किसानी के काम से जुड़े थे।

कार्तिक ने पिता के साथ मशीन और जनरेटर बनाना शुरू किया और वे अक्सर मशीनों की डिलीवरी के लिए गौशाला और किसानों के पास जाते रहते थे। इसी सिलसिले में उन्हें एक दिन गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन बनाने का आईडिया आया। कार्तिक के मुताबिक़ वह पटियाला स्थित गौशाला में चाफ कटर की डिलीवरी के लिए गए थे। उन्होंने वहां गोबर का भण्डार देखा। गौशाला के लोग भी इतने गोबर के इकठ्ठा होने से परेशान थे। कार्तिक आखिर एक इंजीनियर थे, तो उनका इंजीनियरिंग वाला दिमाग चला।

इनोवेटर कार्तिक हिंदी अख़बार को बताते हैं की “मुझे आज भी याद है कि उस दिन गौशाला से निकलते ही, मुझे एक आटे की सेवइयां बनाने वाला मिला था। पंजाब में हमेशा लोग घर पर ही आटे से सेवइयां बनवाते हैं। सेवइयां बनाने वाले की मशीन को देखकर ही, मुझे गोबर से लकड़ी बनाने की मशीन का आईडिया आ गया।” बस यहाँ से कार्तिक के इनोवेशन शुरू हुए।

वे सबसे पहले अपनी फैक्ट्री गये और वहां सेवइयां बनाने की मशीन का ही एक बड़ा रूप डिज़ाइन किया। यह मशीन भी आटा चक्की की मशीन की तरह काम करती है। इसकी प्रोसेस में 3-4 दिन पुराना गोबर उपयोग में लाया जाता हैं, जिसमें नमी थोड़ी कम हो।

फिर मशीन में आगे वाले भाग में अलग आकार के एक्सक्लूडर्स लगे हैं, जिसकी मदद से गोबर आपके मनमुताबिक़ आकर में बदल जाता है। इसे सुखाकर जलाने के उपयोग में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। ये लकड़ियां हवन, पूजा और अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। गौशाला और किसानों को इससे आमदनी हो हो रही है।

आपको बता दें की अब लोग कार्तिक की मशीन खरीदकर इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। यदि किसी के पास गोबर नहीं भी है, तो वह किसी भी गौशाला से एक रुपये प्रतिकिलो के रेट पर गोबर खरीद सकता है, जिसके बाद थोड़ी बिजली का खर्च मिलाकर गोबर से लकड़ी बनाता है, तो मार्किट में उसका माल 5-7 रुपये किलो के रेट पर बिक जायेगा। मतलब टोटल मुनाफे वाला काम।

कार्तिक इस मशीन को 65 हजार रुपये में बेच रहे हैं। अपनी कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने गोबर ड्रायर मशीन भी बनाई है। कार्तिक ने कहा कि वह अब तक 500 गोबर ड्रायर मशीन (Gobar Sukhane Ki Machine) बेच चुके हैं। यह मशीन गौशाला के साथ, बायोगैस प्लांट्स में भी उपयोग आई जा रही है और बहुत कारगर है।

कार्तिक की बनाई गोबर ड्रायर मशीन (Cow Dung Dryer Machine) को डेरी फार्म (Dairy Farm) वाले भी इस्तेमाल कर आरहे हैं। डेयरी फार्म वाले एक बड़ा गड्ढ़ा करके हर दिन का गोबर इकठ्ठा करते हैं। इसमें पानी और गौमूत्र मिलाकर गोबर का एक लिक्विड रूप बनाया जाता है। फिर इसे पंप की सहायता से मशीन में डाला जाता है। मशीन, पानी और गोबर को अलग करके गोबर का ड्राई पाउडर बना देती है।

इस ऑटोमैटिक मशीन की कीमत 2 लाख 40 हजार रुपये राखी गई है। हालाँकि कार्तिक ने छोटे किसानों के लिए एक छोटी मशीन भी बनाई है, जिसकी कीमत 1 लाख 40 हजार रुपये रखी है। इस मशीन से बनाया गया गोबर पाउडर खाद, दीये, सैपलिंग पॉट और अन्न के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

कार्तिक के इन द्वारा बनाई इन मशीनों को बेचकर पिछले साल 10 करोड़ का मुनाफा अर्जित किया है। कार्तिक का दावा है की वे अब गोबर उठाने के लिए भी एक बैटरी ऑपरेटेड मशीन तैयार कर रहे हैं। यह मशीन गोबर उठाकर कही भी डालने या भरने का काम कर पायेगी।

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