किसान ने इस फसल का एक बार रोपण किया और तीन बार मुनाफा कमाया, आप भी समझे पूरी विधि

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Organic Farming
Organic Farming of Medicinal plants file photo.

Sitapur: भारत देश में किसान भाइयों में एक नई क्रांति दौड़ रही है, वे पारंपरिक खेती के साथ आधुनिक और जैविक खेती को भी अपना रहे है। फल स्वरूप आज किसान अपने आधुनिक और जैविक खेती (Organic Farming) से इतना मुनाफा कमा रहा है कि उसे खेती किसानी के अलावा कोई अन्य काम नहीं करना पड़ रहा।

हम जानते हैं कि हमारा भारत देश खेती किसानी से ही फल फूल रहा है और भारत का 70 प्रतिशत युवा खेती किसानी के बलबूते पर ही अपना जीवन यापन कर रहा है, परंतु किसानों द्वारा उपयोग होने वाला रासायनिक खाद देश के जमीन के लिए काफी हानिकारक साबित हो रहा है और धीरे-धीरे जमीन के उर्वरक शक्ति कम होती जा रही हैें। ऐसे में किसानों को काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ रहा है।

हर वर्ष किसानों को अपनी फसल के लिए लागत बढ़ानी पड़ रही है और मुनाफा कोई विशेष नहीं हो रहा इसीलिए उत्तर प्रदेश किसान भाई अशोक गुप्ता (Ashok Gupta) ने औषधीय पौधों की फसल (Medicinal Plants Crops) लगाकर अपनी इनकम को काफी ज्यादा बढ़ा लिया है तो आइए जानते हैं अशोक भाई के आधुनिक खेती के बारे में।

उत्तर प्रदेश के किसान भाई के सफलता की कहानी

आज की कहानी उत्तर प्रदेश राज्य के किसान भाई अशोक गुप्ता की है, जिसमें उन्होंने पारंपरिक खेती के माध्यम से वे गन्ना गेहूं और धान की खेती करते थे। धीरे-धीरे उनकी लागत में वृद्धि हुई, परंतु मुनाफा बहुत कम हो रहा था वह काफी परेशान हो चुके थे। ऊपर से जंगली जानवरों का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया था, वह उनकी पूरी फसल खराब कर देते थे।

खेतों के चारों तरफ उन्होंने कांटेदार तार से बंद भी कराया, परंतु कोई विशेष फायदा नहीं है। तब उन्होंने आधुनिक और जैविक खेती के कांसेप्ट के तहत औषधीय पौधों की खेती करना प्रारंभ किया। जिसकी वजह से आज वे लाखों रुपए कमा रहे हैं।

पारंपरिक खेती में बे बाजार के कीटनाशक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे जिससे जमीन को भी नुकसान होता था और लागत भी ज्यादा होती थी और अब वे आधुनिक खेती में जैविक खाद वर्मी कंपोस्ट खाद और गोबर से बनी खाद का इस्तेमाल करते हैं।

प्रशिक्षण के बाद ब्राह्मी और बकोपा की खेती प्रारंभ की

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सीतापुर (Sitapur) बिसवा ब्लाक के अंतर्गत आने वाला गांव कामुवा के निवासी अशोक गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2017 में कृषि विज्ञान केंद्र कटिया से जुड़े। इसके बाद उन्होंने सीमैप लखनऊ से उन्हें प्रशिक्षित कराया।

प्रशिक्षण के बाद उन्होंने अपनी 1 एकड़ जमीन पर ब्राह्मी और बकोपा की फसल लगाई इस फसल ने उन्हें करीब 2 से 300000 Ru कमाने में मदद की यहां से उनका आधुनिक खेती का सफर प्रारंभ हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के लोगों को भी औषधीय फसलों की खेती के लिए प्रेरित किया।

Organic Farming Plants
Organic Farming and medicinal plants file photo.

अशोक गुप्ता अपने काम के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ब्राम्ही (Brahmi) और बकोपा (Bacopa Monnieri) औषधीय गुणों से भरपूर है, इसीलिए मार्केट में इसकी मांग काफी ज्यादा है और औषधीय गुणों के कारण जंगली जानवर इनको नुकसान नहीं पहुंचाते।

उन्होंने यह भी बताया कि इस फसल को लगाने में मात्र 20 से 25 हजार रुपए की लागत आती है और आप इस फसल को 1 वर्ष में तीन बार काट सकते हैं। याने 1 वर्ष में आप तीन बार मुनाफा कमा सकते। यदि आप चाहे तो इस फसल के साथ अन्य फसलों को भी लगा सकते हैं आपको दोनों फसलों से लाभ प्राप्त।

जैविक खेती के कांसेप्ट को समझते हुए अशोक गुप्ता स्वयं निर्मित करते हैं खाद और कीटनाशक

अशोक गुप्ता का कहना है कि मार्केट में मिलने वाला कीटनाशक और रसायनिक खादों में काफी ज्यादा मात्रा में केमिकल का इस्तेमाल होता है, लगातार इन रसायनिक खादों के इस्तेमाल से जमीन में बांझपन आते जा रहा है और उसकी उत्पादकता कम होती चली जा रही है।

Money Presentation Photo.

फल स्वरुप लागत में वृद्धि और मुनाफा कम हो रहा है, इसलिए अशोक गुप्ता कहते हैं कि वे जैविक खेती को अपनाकर स्वयं गोबर और केंचुए से तरह-तरह की खाद का निर्माण करते हैं और कीटनाशक भी वे स्वयं बनाकर अपनी खेती में इस्तेमाल करते हैं इस वजह से खेती अच्छी हो रही है और बाजार के कीटनाशक और रासायनिक खाद के खर्चे से निजात मिल गया।

किराए की जमीन लेकर अपने काम को बढ़ाया दोगुना

जब अशोक गुप्ता ने देखा कि उन्हें इस फसल में काफी ज्यादा फायदा है, तो उन्होंने अपने ही गांव में 4 एकड़ जमीन किराए पर लेकर अपने काम के दायरे को बढ़ाया। वे चार एकड़ जमीन पर ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit), अकरकरा, कैमोमिल, तुलसी (Tulsi), अश्वगंधा (Ashwagandha), हिबिस्कस जैसे औषधीय पौधों की खेती करते हैं। जिससे उन्हें उनकी वर्तमान आए 7 से 800000 Ru हो गई है। उनकी फसल खेतों से ही बिक जाती है उन्हें मार्केट में भटकना नहीं पड़ता लोग उनकी फसल को उनके खेत से ही ले जा लेते हैं।

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