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Patna: बिहार का एक छोटा सा गांव है चिल्हाकी बीघा (Chilhaki Bigha) जो एक सूखे से ग्रस्त इलाका के अंतर्गत आता है, यहां केवल 60 घर हैं। यह ग्राम रबी, गेहूं, दालों, सरसों और सब्ज़ियों की खेती के लिए प्रसिद्ध था। खेती के मोके होने के बावजूद गांव के लोग अक्सर गांव छोड़ कर चलें जाते हैं, क्योंकि उन्हें किसानी से कम ही लाभ मिल पाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में, न तो पहाड़ी इलाका है और न ही यहाँ की ज़मीन ही उपजाऊ है, लेकिन यहाँ के निवासियों ने स्ट्रॉबेरीज की फसल (Strawberry Ki Fasal) उगाने में सफलता हासिल की है। इससे गांव वालों के न केवल आमदनी की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई है बल्कि इस अविकसित क्षेत्र में रोजगार के अवसर में भी बढ़ोतरी हुई है।
इस ग्राम में यह बदलाव बृजकिशोर मेहता (Brijkishore Mehta) के पुत्र गुड्डू कुमार (Guddu Mehta) के कारण से आया, जो हरियाणा के हिसार (Hisar) में एक फार्म में कार्य करता है। जब बृजकिशोर ने अपने पुत्र (Brijkishore Mehta son, Guddu Kumar) से हिसार के उसके कार्य के विषय में पूछा तब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के विषय में बताया।
बृजकिशोर का कहना हैं, “पहले मुझे नहीं मालूम था कि स्ट्रॉबेरी दिखने मे कैसी होती है, मैंने इसे उगाने का निर्णय लिया तब मेरे बेटे ने खुद भी यहीं गांव में रहने का निर्णय किया।” इस गांव की प्राकृतिक माहौल हिसार से काफ़ी मिलती जुलती थी।
बृजकिशोर ने इस कारण से इसे उगाने के विषय में सोचा। खतरा उठाने से पहले बृजकिशोर औरंगाबाद के कृषि विज्ञान केंद्र गए। उन्होंने बृजकिशोर को समस्तीपुर (Samastipur) जिले के सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी इन्हें पूसा जाने की हिदायत दी। वहां पर कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि बिहार में स्ट्रॉबेरी की खेती कर पाना असंभव है। बृजकिशोर यह सुनकर दुःखी और निराश हो गए।
Meet Brij Mehta from Aurangabad. The farmer who introduced Bihar to Strawberry farming. There was a time when he wanted his sons to go far away from farms, to do even petty jobs. But now he says, why should they go anywhere if we get 6-10 lakhs per acre p.a from cultivation. pic.twitter.com/N5JCsalrVo
— Bhuwan Bhaskar (@bhuwanbhaskar) February 19, 2020
यह सब सुनने के बाद भी बृजकिशोर जोख़िम लेने पर अड़े थे। वह अपने पुत्र के साथ हिसार के किसानों से मिले। आख़िर में उन्होंने अपने खेत में 2013 में स्ट्रॉबेरी के सात पौधे लगाए। अंत में उन सात पौधों से 500 नए पौधे तैयार हो गए। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को गलत सिद्ध कर दिया।
स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Ki Kheti) की कामयाबी को देखकर ग्राम के लोगों ने भी बृजकिशोर से बातचीत कर इसकी खेती प्रारम्भ कर दी। यह परिवर्तन पूरे गांव और नजदीक के इलाकों में पहुंच गया और इससे खेती में लाभ भी होने लगा। गांव के लोग जो पलायन कर बाहर चले गए थे वे भी वापस लौटने लगे।
#UttarPradesh: More and more farmers in western Uttar Pradesh are giving up on farming of traditional crops and opting for #strawberry farming.
These farmers are giving up on #sugarcane farming, mainly because of delayed payments from sugar mills. pic.twitter.com/asR12HIfl4
— IANS (@ians_india) March 21, 2021
आज ब्रजकिशोर और उनके तीन लड़के ने अपने कार्य के लिए 15 स्थायी कर्मचारी और 30 अस्थायी कर्मचारी रखे हुए हैं। वे अपने दो बीघा भूमि के अलावा लीज में 6 बीघा भूमि लेकर स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं। आसपास के गांवों की बहुत सारी महिलाओं को भी इस गांव में रोजगार मिला रही है। उन्हें इसके लिए 1 दिन का ₹200 और खाना मिल रहा है।
Meet India's progressive farmers Gurleen and Sajjan, who have scripted history by cultivating strawberries despite adverse climatic conditions. The #strawberry growers are getting overwhelming support and demand for their organic produce. Organic farming is the way forward! pic.twitter.com/ww7qdcgHwP
— P C Mohan (@PCMohanMP) February 20, 2021
इस गांव में और निकट के इलाकों में स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) की मांग बढ़ने लगी। इससे गांव के निवासी को बहुत लाभ पहुंचने लगा। यहां के किसान कम वक़्त में एक बीघे भूमि से 2.5 से 3 लाख तक कमा लेते थे। इस खेती का कांसेप्ट कृषि के किसी भी रिसर्च पेपर में नहीं मिलता था।