वैज्ञानिकों को गलत साबित कर बिहार के किसानों ने की स्ट्रॉबेरी की खेती, हुआ भरपूर मुनाफ़ा

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Strawberry Farming
Bihar farmers turn to strawberry cultivation to find sweet returns. Bihar Farmers Prove Scientists Wrong, Grow Strawberries With Sweet Returns.

Demo Photo Credits: Twitter

Patna: बिहार का एक छोटा सा गांव है चिल्हाकी बीघा (Chilhaki Bigha) जो एक सूखे से ग्रस्त इलाका के अंतर्गत आता है, यहां केवल 60 घर हैं। यह ग्राम रबी, गेहूं, दालों, सरसों और सब्ज़ियों की खेती के लिए प्रसिद्ध था। खेती के मोके होने के बावजूद गांव के लोग अक्सर गांव छोड़ कर चलें जाते हैं, क्योंकि उन्हें किसानी से कम ही लाभ मिल पाता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में, न तो पहाड़ी इलाका है और न ही यहाँ की ज़मीन ही उपजाऊ है, लेकिन यहाँ के निवासियों ने स्ट्रॉबेरीज की फसल (Strawberry Ki Fasal) उगाने में सफलता हासिल की है। इससे गांव वालों के न केवल आमदनी की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई है बल्कि इस अविकसित क्षेत्र में रोजगार के अवसर में भी बढ़ोतरी हुई है।

इस ग्राम में यह बदलाव बृजकिशोर मेहता (Brijkishore Mehta) के पुत्र गुड्डू कुमार (Guddu Mehta) के कारण से आया, जो हरियाणा के हिसार (Hisar) में एक फार्म में कार्य करता है। जब बृजकिशोर ने अपने पुत्र (Brijkishore Mehta son, Guddu Kumar) से हिसार के उसके कार्य के विषय में पूछा तब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के विषय में बताया।

बृजकिशोर का कहना हैं, “पहले मुझे नहीं मालूम था कि स्ट्रॉबेरी दिखने मे कैसी होती है, मैंने इसे उगाने का निर्णय लिया तब मेरे बेटे ने खुद भी यहीं गांव में रहने का निर्णय किया।” इस गांव की प्राकृतिक माहौल हिसार से काफ़ी मिलती जुलती थी।

बृजकिशोर ने इस कारण से इसे उगाने के विषय में सोचा। खतरा उठाने से पहले बृजकिशोर औरंगाबाद के कृषि विज्ञान केंद्र गए। उन्होंने बृजकिशोर को समस्तीपुर (Samastipur) जिले के सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी इन्हें पूसा जाने की हिदायत दी। वहां पर कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि बिहार में स्ट्रॉबेरी की खेती कर पाना असंभव है। बृजकिशोर यह सुनकर दुःखी और निराश हो गए।

यह सब सुनने के बाद भी बृजकिशोर जोख़िम लेने पर अड़े थे। वह अपने पुत्र के साथ हिसार के किसानों से मिले। आख़िर में उन्होंने अपने खेत में 2013 में स्ट्रॉबेरी के सात पौधे लगाए। अंत में उन सात पौधों से 500 नए पौधे तैयार हो गए। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को गलत सिद्ध कर दिया।

स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Ki Kheti) की कामयाबी को देखकर ग्राम के लोगों ने भी बृजकिशोर से बातचीत कर इसकी खेती प्रारम्भ कर दी। यह परिवर्तन पूरे गांव और नजदीक के इलाकों में पहुंच गया और इससे खेती में लाभ भी होने लगा। गांव के लोग जो पलायन कर बाहर चले गए थे वे भी वापस लौटने लगे।

आज ब्रजकिशोर और उनके तीन लड़के ने अपने कार्य के लिए 15 स्थायी कर्मचारी और 30 अस्थायी कर्मचारी रखे हुए हैं। वे अपने दो बीघा भूमि के अलावा लीज में 6 बीघा भूमि लेकर स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं। आसपास के गांवों की बहुत सारी महिलाओं को भी इस गांव में रोजगार मिला रही है। उन्हें इसके लिए 1 दिन का ₹200 और खाना मिल रहा है।

इस गांव में और निकट के इलाकों में स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) की मांग बढ़ने लगी। इससे गांव के निवासी को बहुत लाभ पहुंचने लगा। यहां के किसान कम वक़्त में एक बीघे भूमि से 2.5 से 3 लाख तक कमा लेते थे। इस खेती का कांसेप्ट कृषि के किसी भी रिसर्च पेपर में नहीं मिलता था।

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