सड़कों पर झाड़ू लगाने वाली 2 बच्चों की मां दिन रात मेहनत कर बनी SDM अफसर, बदली तकदीर

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Success Story of Asha Kandara
Success Story Jodhpur Asha Kandara Sweeper Became Ras Officer. Asha Kandara was working as a sweeper to support her family while she awaited her RAS exam results. How She Became sweeper to Officer.

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Jaipur: कहते हैं दुनिया मे कामयाब होने के लिए इंसान को उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। अगर वो पूरे मन से अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करता है तो एक न एक दिन कामयाबी उसके कदम चुम लेती है। जोधपुर नगर निगम में सफाईकर्मी (Sweeper) की नौकरी करके अपना घर चलाने वाली आशा कण्डारा का उदाहरण हर एक को भावुक कर देगा।

अपनी मेहनत से आशा ने अपनी किस्मत बदल दी है और अब वो एसडीएम की कुर्सी संभालने के लिए तैयार हैं। जोधपुर (Jodhpur) के नगर निगम (Nagar Nigam) की सफाईकर्मी आशा कंडारा का कभी सपना था कि वो आर्मी में जफर देश सेवा करेंगी। लेकिन, तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। घरवालों को रिश्ता मिल गया और कम उम्र में 12वीं पास करने के बाद ही शादी करवा दी। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, दो बच्चों के बाद पत‍ि ने साथ छोड़ दिया।

संघर्षों से भरी पहाड़ जैसी जिंदगी को जीते हुए सफाईकर्मी से वो आज राजस्थान प्रशासनिक सेवा की अफसर बनने जा रही हैं। आशा ने 16 साल बाद ग्रेजुएशन किया और मन में ठान लिया कि मुझे प्रशासनिक सेवा में जाना है। उसके साथ ही आशा ने आरएएस (RAS) की तैयारी शुरू की, 2018 आरएएस भर्ती के लिए फॉर्म भरा।

फिर प्री एग्जाम पास (Pre Exam) किया और उसके बाद मेन भी पास कर लिया, लेकिन लंबी प्रक्रिया के दौरान परिवार को पैसों की जरूरत थी 2 बच्चों की जिम्मेदारी भी सर पर थी। लेकिन सपने भी मन मे संजो लिए थे। उन सपनों को भी पूरा करना था। अपने सपनों को पूरा करने के अपने होसलो को मजबूत बनाये रखा। आशा कंडारा अपनी कड़ी मेहनत के बल पर आरएएस परीक्षा (RAS Exam) 2018 को पास कर चयनित हो गई है। जो देश के करोड़ों युवाओं के लिए मिसाल बन गई है।

आशा सुबह-शाम जोधपुर की सड़कों पर झाड़ू लगाती और जो समय मिलता उसमें अपने दो बच्चों की परवरिश करती, इसके बाद बचे हुए समय में वह मन लगाकर पढ़ाई करती। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसकी यह मेहनत रंग लाई। शादी के 5 साल बाद ही पति ने छोड़ दिया, लेकिन हौसला नही हारी। आगे बढ़ने के लिए दिन रात मेहनत करती।

आशा कंडारा (Asha Kandara) की अभी तक की लाइफ कठनाइयों से भरी रही है। 1997 में आशा की शादी हुई थी, लेकिन शादी के करीब 5 साल बाद ही पति ने तलाक देकर छोड़ दिया। लेकिन इसके बाद भी आशा ने हिम्मत नहीं हारी और कुछ अलग करने का ठान लिया। पिता अकाउंटेंट थे जो कि रिटायर हो चुके हैं। ऐसे में अब घर का खर्चा चलाने की जिम्मेदारी भी आशा के कंधों पर आ गई। आशा उन जिम्मेदारी से पीछे नही हटी। हर परिस्थिति का डटकर सामना किया।

चेहरे के चारों तरफ दुपट्टा बांधकर, हाथों में झाड़ू लेकर सड़कों पर सफाई करती आशा ने वो कारनामा कर दिखाया जो शायद ही कुछ लोग कर पाते हैं। जोधपुर नगर निगम में सफाई कर्मचारी से एसडीएम बनी आशा की कहानी जिसने भी सुनी उसकी आंखें नम हो गई। अपने हौसले से कामयाबी की इबारत लिखी।

जोधपुर नगर निगम में झाड़ू लगाने वाली सफाईकर्मी आशा कण्डारा (Asha Kandara) ने वो कर दिखाया जो आज के युग मे बहुत कठिन है। किसी को सारी सुख सुविधा भी मिल जाती लेकिन वो इतनी मेहनत नही कर पाता कि उस परीक्षा को पास कर सके। लेकिन आशा उन सभी लोगो के लिए मिसाल बनी है, जो कहते है कि गरीबी के कारण अच्छी स्कूल में पढ़ नही पाए या फिर पैसों की कमी है उन सब के लिए आशा नई सिख बनी है।

आज जिसने भी आशा की सफलता (Success) सुनी हर किसी ने दिल से सलाम किया। पति से अलग होने के बाद 2 बच्चों की जिम्मेदारी के साथ ये सब कर पाना आसान नही था। लेकिन आशा ने अपनी मेहनत और जुनून से कर दिखाया। आशा बताती है कि वो नगर निगम में झाड़ू लगाने के साथ साथ खाली वक्त में किताबें लेकर बैठ जाती थी। सड़क किनारे, सीढ़ियों पर जहां भी वक़्त मिलता था, पढ़ाई करना शुरू कर देती।

आज इन्हीं किताबों के जादू ने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी है। राजस्थान प्रशासनिक सेवा में आरएएस 2018 में आशा का चयन अब हो गया है। अब वो अनुसूचित वर्ग से SDM के पद पर काबिज होंगी। आशा की ज़िंदगी इतनी आसान नहीं थी। 8 साल पहले ही पति से झगड़े के बाद दो बच्चों के पालनपोषण की ज़िम्मेदारी भी आशा पर ही आ गई थी। नगर निगम में झाड़ू लगाती थी। मगर सफ़ाई कर्मचारी के रूप में नियमित नियुक्ति नहीं मिल पा रही थी। इसके लिए इसने 2 सालों तक नगर निगम से लड़ाई लड़ीं लेकिन कुछ नहीं हुआ।

आशा ने कहा कि दिन में वो स्कूटी लेकर झाड़ू लगाने आती थी और स्कूटी में हीं किताब लेकर आती थी। यही काम करते हुए उन्होंने पहले ग्रेजुएशन किया और फिर नगर निगम के अफ़सरों को देखकर अफ़सर बनने की भी ठान ली। इसी के बाद सिलेबस पता किया और तैयारी शुरू कर दी। उनके लिए कठ‍िन दिनचर्या के बीच ये मुश्क‍िल तो बहुत था, लेकिन उन्होंने हालातों के सामने कभी हार नहीं मानी और तैयारी में जुटी रहीं।

आज उन्हें अपना वो मुकाम मिल गया है, जिसका सिर्फ सपना ही देखा था। आशा की सफलता इसलिए भी खास है, क्योंकि वो दो बच्चों की मां हैं। आशा आज जिस मुकाम पर हैं, उसके लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया है। करीब 8 साल पहले वो अपने पति से अलग हो गई थीं। दो बच्चों के पालनपोषण की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर थी। घर चलाने के लिए उन्हें नगर निगम में सफाईकर्मी बनने का मौका मिला तो वो पीछे नहीं हटी। पूरे मन से उन्होंने यह काम किया।

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