भाई चलाता था रिक्शा, चूड़ियां बेचती थीं मां, अब बहन ने कलेक्टर बनकर गर्व से सिर ऊंचा किया

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Wasima Sheikh Success Story
A Success Story and educational journey of Deputy Collector Wasima Sheikh who cracked MPSC Results 2019. Wasima Sheikh, a talented girl from Nanded, came third in the state Exam among girls. Success Story of lady officer in Hindi.

Nagpur: आज भी हमारे समाज में महिलाओं को कमजोर समझा जाता है और उन्हें घर से बाहर निकलने की परमिशन नहीं मिलती। कहते हैं कि अगर आपमें किसी चीज को पाने की ललक है और आप उसके लिए मेहनत करते हैं तो आपको उसे हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। परिस्थितियों चाहे कैसी भी हों, आप अपनी मेहनत और लगन से सफलता (Success) हासिल कर सकते हैं।

सिविल सेवाओं की परीक्षा (Civil Service Exam) में हमने ऐसे उदाहरण बनाने वाले कई छात्र देखे हैं। कहते हैं कि अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे हमसे मिलाने की साजिश में लग जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया वसीमा शेख ने। परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों अगर आपका लक्ष्य निर्धारित है तो निश्चित ही आपको सफलता मिलेगी।

लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) के नांदेड़ (Nanded) जिले की रहने वाली वसीमा शेख (Wasima Sheikh) ने तमाम परेशानियों को झेलते हुए महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन परीक्षा (MPSC Exam) दी। समाज की अन्य महिलाओं के लिए मिसाल कायम की है। सिविल सेवाओं की परीक्षा में ऐसी सफलता पाने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

इन्ही मे से एक है वसीमा शेख, जिन्होनें महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा (Maharashtra Public Service Commission Exam) में टाॅप कर न सिर्फ अपना व परिवार वालों के साथ-साथ पहचान वालों का भी नाम रोशन किया है। वसीमा (Wasima Sheikh) ने महिला टाॅपर्स की लिस्ट में तीसरा स्थान हासिल किया है। वसीमा उन लोगों के लिए एक मिसाल बन गई हैं, जो गरीबी या अन्य परेशानी के कारण बीच में ही हार मान जाते हैं।

पैसों की दिक्कत के कारण कई स्टूडेंट्स अपने सपनो को पीछे छोड़ दूसरे रास्ते निकल पड़ते है। लेकिन सफलता गरीबी अमीरी नही देखती वे तो हुनर की मोहताज है। जिसके पास गरीबी है, उसने भी अपने हुनार से बड़ी बड़ी सफलता अपने नाम की। जिसके पास हुनार नही उसने अमीरी में भी कभी कोई सफलता हासिल नही की। ये तो मेहनत ना करने वालो की सोच है।

मराठी माध्यम से तैयारी करने वाली वसीमा शेख को महाराष्ट्र में डिप्टी क्लेक्टर (Maharashtra Deputy Collector) या उप-जिलाधिकारी पद के लिए चुना गया है। वसीमा की राह पर चलते हुए इनकी दो छोटी बहनें भी अब सिविल सर्विस की तैयारी कर रही हैं। वसीमा को सभी ने उनकी सफलता पर बधाई दी।

वसीमा अपने बीते दिनों को याद करते हुऐ बताती है, बहुत मुश्किल भरा रहा ये सफर, सफर मुश्किल तो था, लेकिन बचपन में जो संघर्ष किया था, उसी हिसाब से प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रही थी, तो इस कारण ज्यादा मुश्किल नहीं हुई।

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखती हूं। लगभग 1500 की जनसंख्या वाले सांगवी गांव में हम 4 बहन और 2 भाई,माता-पिता के साथ रहते थे। क्योंकि मेरे अब्बा की दिमागी हालत ठीक नहीं है तो घर का पूरा जिम्मेदारी अम्मी के सिर था। वे दूसरे लोगों के खेतों पर काम कर घर का खर्च चलाती थीं।

घर घर जाकर चूड़ियां बेचा करती थी। जिससे हम लोगो को अच्छी शिक्षा दे पाये। 10वीं तक कभी-कभी हम भी उनके साथ जाते थे। लेकिन घर में ज्यादा लोग थे तो उन पर 6 भाई बहन थे, हम लोग तो जिम्मेदारी ज्यादा पड़ जाती थी। जब मैं दसवीं में थी तो मुझसे बड़े भाई जो तब बीएससी फर्स्ट ईयर में थे।

उन्होंने घर को सपोर्ट करने और हमारा पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। जिससे अम्मी और भाई ने मिलकर हमको पढ़ाया। मेरी 7वीं क्लास तक की पढ़ाई बेसिक जिला परिषद के स्कूल में हुई। उसके बाद गांव में ही स्थित एक छोटे से प्राइवेट स्कूल से मैनें 10वीं की शिक्षा पूरी की।

उसके बाद 11वीं की पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल नहीं था तो रोज 6 किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे गांव स्कूल जाना होता था। गांव में कोई प्रयाप्त संसाधन भी नही थे। सवारी का भी कोई साधन नहीं था। ऊपर से गांव से कोई लड़की पढ़ने के लिए नहीं जाती थी। जैसे-तैसे तो 11वीं किया। फिर मैंने आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए नानी के यंहा जाना उचित समझा।

फिर 12वीं में मैंने अपनी नानी के यहां एडमिशन लिया। हालांकि वहां भी स्कूल 10 किलोमीटर दूर था लेकिन वहां से आने-जाने के लिए लोकल बस की सुविधा उपलब्ध थी। तो उसी से मैं आती-जाती थी। 12वीं के बाद मैंने महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से बीए में एडमिशन लिया और साथ-साथ प्राइमरी टीचर के लिए एक डिप्लोमा बीपीएड किया।

गांव में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने नही दिया जाता था, जिस कारण हमारे साथ कोई लड़की पढ़ने के लिए नहीं जाती थी, मुझे और मेरे घर वालों को बाहर के लोग बोलते थे, उनके विरोध का हमें सामना करना पड़ा। लेकिन मेरे भैय्या और अम्मी ने हमेशा मेरा सपोर्ट किया। उन्होंने मुझे कभी नहीं रोका। हमेशा हम लोगो का हौसला बढ़ाया।

एक समय ऐसा था, जब मैने सरकारी नौकरी या सिविल सर्विस में जाने के लिए विचार बना लिया। मैं हमेशा सोचती थी कि एक सरकारी अधिकारी को पूरा सिस्टम सपोर्ट करता है। अगर एक सरकारी अधिकारी कोई एक अच्छा निर्णय लेता है, तो समाज के लाखों लोगों पर उसका पॉजिटिव असर पड़ता है। चूंकि मैं ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखती हूं तो मैंने लोगों की समस्याओं को बहुत पास से देखा है। छोटे-छोटे कामों के लिए उन्हें बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। तो उन लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए मैं ये करना चाहती थी।

मैंने ग्रेजुएशन के बाद 2016 में एमपीएससी परीक्षा (MPSC Exam) की तैयारी स्टार्ट कर दी थी। चूंकि सिविल सेवा की तैयारी के लिए कंसिस्टेंसी के साथ रोज 10-12 घंटे की पढ़ाई करनी होती है और वह माहौल मुझे नांदेड़ में मिल नहीं पा रहा था, गाँव के लोग ताने देते थे, ऊपर से अपने ही समुदाय के लोग विरोध करते थे, तो मेरे बड़े भाई मुझे पुणे लेकर आ गए, जिससे की मुझे यहां अच्छा माहौल, लाइब्रेरी वगैरह की सुविधा मिल सके।

वसीमा अच्छे से पढ़ाई कर पाएं। इसका उनके बड़े भाई ने पूरा ख्याल रखा। वसीमा ने भी अपने भाई को निराश नहीं किया। फिर यहां आकर मैंने किराए पर रहकर रोज 12-15 घंटे बिना कोचिंग के पढ़ाई की। 2 साल बाद 2018 में मेरा चयन नागपुर में सेल्स टैक्स-इंस्पेक्टर के लिए हो गया था। जो मैंने जॉइन भी किया और अभी मैं वहीं कार्यरत हूं।

अब चूंकि यह एक ऑफिस वर्क था और ज़मीन पर रहकर काम करना मेरा जुनून था, फील्ड वर्क मुझे अच्छा लगता था तो मैंने साथ ही साथ डिप्टी कलेक्टर के लिए पढ़ाई भी जारी रखी। मैने अपनी पढ़ाई को बंद नही किया। अपने सपने को बनाये रखा। बाद में वो महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन में महिला टॉपर्स लिस्ट में तीसरा नंबर लेकर आईं। वसीमा 4 बहनों और 2 भाइयों में चौथे नंबर पर हैं।

वसीमा अपनी कामयाबी का सारा श्रेय भाई और मां को देती हैं। उन्होंने कहा कि अगर भाई मुझे नहीं पढ़ाते, तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती। मां ने बहुत मेहनत की। वसीमा नांदेड़ से लगभग 5 किलोमीटर दूर जोशी सख वी नामक गांव में पैदल पढ़ने जाती थीं।

डिप्टी कलेक्टर बनीं वसीमा कहती हैं, आपको कुछ बनना है तो अमीरी-गरीबी कोई मायने नहीं रखती है। वसीमा अपनी मां और भाई को सफलता का श्रेय देती हैं। उनके परिवार ने पढ़ाई पर जोर दिया और उसी का नतीजा है कि उन्होंने इस परीक्षा में टॉप किया था। वसीमा की कहानी (Wasima Sheikh Story) लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है।

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