राजस्थान के इस गांव का बच्चा-बच्चा रखता है, देश सेवा का जज्बा, खौफ खाता है पाकिस्तान

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Jhunjhunu Indian Army
Jhunjhunu Rajasthan is land of Heroes of Indian Army. Jhunjhunu is the land of such heroes who gave birth to many knights. Jhunjhunu The Land of Indian Army Bravehearts in Hindi.

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Jhunjhunu, Rajasthan: शेखावाटी के झुंझुनूं जिले (Jhunjhunu) के बेटों पर यहां की मिट्टी पर नाज है। यहां के बेटे देश के लिए मर मिटना गर्व की बात समझते हैं। देश को सबसे अधिक सैनिक और शहीद देने वाली झुंझुनूं की मिट्टी के कण कण में वीरता टपकती है। यहां की माताएं लोरी में अपने बच्चों को वीरों की कहानी (Story of Braves) सुनाती है।

प्रदेश के शेखावाटी अंचल इलाके के लाडलों के रग-रग में देश सेवा का जज्बा भरा है, तभी कारगिल जंग में सीकर, झुंझुनूं (Jhunjhunu) और चूरू (Churu) के 32 जवान वीरगति को प्राप्त हो गये थे। कारगिल (Kargil) के अलावा भी अन्य कई जंगों में यह तीन जिले देश की रक्षा करते रहे हैं।

झुंझुनूं जिले के धनुरी गांव

शेखावाटी का झुंझुनूं जिला राजस्थान में ही नहीं पूरे देश में शूरवीरों, बहादुरों के लिए अपनी एक विशेष पहचान रखता है। इसी जिले में एक गांव है धनूरी, जिला मुख्यालय से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित धनूरी गांव फौजियों की खदान है। बहादुरी की मिसाल है। धनूरी गांव का रिकॉर्ड आपको हैरान कर सकता है। यहां के हर दूसरे घर में फौजी है।

ये गांव है, झुंझुनूं के मलसीसर उपखंड में नाम है धनूरी। देशभर में इसे कुर्बानी के गांव के रूप में पहचान मिली है। मातृभूमि के लिए मर मिटने का जिक्र होते ही सबसे पहले धनूरी का नाम सामने आता है। गांव के 17 मुस्लिम सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है।

मुस्लिम बाहुल्य इस गांव का नाम देश में सर्वाधिक कुर्बानी देने वाले पहले तीन गांवों में शुमार है। पहले और विश्व युद्ध में भी इस गांव के दस जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। पहले विश्व जंग में धनूरी के छह और दूसरे विश्व जंग में चार जवानों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

आजादी के बाद भी इस गांव से सात जवान कुर्बान हो चुके हैं। इनमें 1971 के भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक की तरह ही रेड स्ट्राइक को अमल में लाने वाले मेजर एमएच खान भी शामिल हैं। जंग में वीरगति को प्राप्त हुए खान को वीरगति प्राप्त होने बाद वीर चक्र से सम्मानित किया गया। धनूरी गांव के 18 बेटों ने देश के लिए कुर्बानी दी है।

झुंझुनूं जिले के भिर्र गांव सेनिको की खदान

कारगिल में सीकर, झुंझुनूं व चूरू के सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं, झुंझुनूं जिले के भिर्र गांव के बारे में, 900 घरों वाले इस गांव से अब तक 1400 फौजी देश की रक्षा के लिए निकले हैं। भारतीय सेना की बहादुरी, समर्पण और मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने की परम्परा को आगे बढ़ाने में राजस्थान सबसे आगे है।

इसलिए राजस्थान को वीर प्रसूता भूमि के रूप में भी पहचाना जाता है। लेकिन राजस्थान के झुंझूनूं जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां के हर घर से एक फौजी है। इतना ही नहीं, इस गांव को हासिल है एक ही गांव से सर्वाधिक वीरगति को प्राप्त होने वाले बेटो का गौरव भी प्राप्त है।

प्रथम विश्व जंग से लेकर पड़ोसी देशों से भारत के अब तक हुए हर जंग में दुश्मन के खिलाफ इस गांव के बेटों ने अपना सहयोग देते हुये अपने साहस का परिचय दिया है। यहां की पांच पांच पीढ़ियों ने देश सेवा की परंपरा को निभाया है। करीब 1500 घरों की आबादी वाला धनूरी गांव कायमखानी मुस्लिम बहुल है।

यहां की करीब 90 फीसदी आबादी कायमखानियों की है। वर्तमान में भी सबसे ज्यादा फौजी इसी गांव में हैं। गांव के करीब 600 बेटे अभी सेना में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। धनूरी गांव के पूर्व फौजी मोहम्मद हुसैन खां बताते हैं कि गांव में लगभग 600 फौजी हैं। इस गांव के 18 बेटे विभिन्न जंगो में व सरहद की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये है।

बहू-बेटियां भी कम नही बहादुरी में

राजस्थान से देश को सर्वाधिक फौजी देने वाले झुंझुनूं जिले की बहू-बेटियां भी कम बहादुर नहीं हैं। यहां के बेटों के साथ अनेक बहू-बेटियां इंडियन आर्मी ज्वाइन कर देश की रक्षा कर रही हैं। झुंझुनूं का धनूरी गांव तो देशभर में फौजियों की सबसे बड़ी खान है, मगर आज हम आपको झुंझुनूं के ही ऐसे गांव लेकर चले हैं, जहां की बहू और बेटी दोनों आर्मी में मेजर हैं।

फेक्ट्री बन गई फौजी सप्लाई करने की

धनूरी गांव को यदि भारतीय सेना को फौजी सप्लाई करने वाली फैक्ट्री कहा जाए तो इसमें कोई दो मत नहीं होगी। आज भी गांव के लोगों में राष्ट्रसेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा है। एक हजार की आबादी वाले इस गांव के 270 लोग अभी सेना की विभिन्न इकाइयों में कार्यरत हैं और साढ़े चार सौ से ज्यादा गौरव सैनानी (पूर्व सैनिक) गांव में रहते हैं।

बना हुआ है जुनून

गांव के युवाओं में आज भी सेना में भर्ती होने का जज्बा इस कदर बना हुआ है कि यहां के युवा सुबह साढ़े 4 बजे उठकर दौड़ लगाते हैं। शाम को भी अभ्यास करते हैं। खेलों के माध्यम से खुद को तैयार करते हैं। हर सेना भर्ती में गांव के युवा पहुंचते हैं। सेना में सेवा दे चुके गौरव सेनानी भी युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं। सेना में कार्यरत जवान छुट्टी पर आकर खेलकूद प्रतियोगिताओं के माध्यम युवाओं की हौंसला बढ़ाने में पीछे नही हटते हैं।

केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) से रिटायर्ड मोहम्मद हसन का कहना है कि गांव के हर घर का नाता भारतीय सेना से है। गांव के ही गौरव सैनानी अरशद अली कहते हैं कि धनूरी में जन्मे हर व्यक्ति में देश भक्ति का पैदाइशी जुनून है। खुद उनके परिवार के चार लोग अभी सेना में अपनी सेवा दे रहे हैं।

शहीद स्मारक का सपना

गांव के लोगों को तमन्ना है कि यहां श-हीद स्मारक लम्बे इंतजार के बाद भी नहीं बन पाया है। गांव के लिए कैंटीन की सुविधा भी नहीं है तो गांव की हायर सैकंड्री स्कूल का नाम भी शहीद एचएम खान के नाम पर नहीं हो पाया है। धनुरी में रह रहे सेना के रिटायर्ड कैप्टन अली हसन खान का कहना है कि गांव के लोग सरकार से श-हीद स्मारक के लिए जमीन आवंटित करने की मांग करते रहे हैं, लेकिन उनकी सुनी ही नहीं जा रही। उनकी बातें केवल कागज में ही सिमिट कर रह गई है। अधिकारी आते तो है लेकिन उनकी बातों को सुन दरकिनारे कर देते है।

पांच पांच पीढ़ियां सेना में सेवा दे रहे

धनूरी के शहीद मोइलियास खान आठ भाई हैं। आठ में से सात भाइयों ने फौज में भर्ती होकर देश सेवा की। मोइलियास खान 1962 की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इनके भाई सूबेदार निसार अहमद खान, सरवर खां, कैप्टन नियाज माहम्मद खां, मो. इकबाल खां, शब्बीर अली खां व अब्दुल अजीज खां हैं।

इसके अलावा वीरगति को प्राप्त कुतुबुद्दीन खां के बेटे कैप्टन मोइनुदीन खां, इनके बेटे कर्नल जमील खां और जमील खां का बेटा वर्तमान में लेफ्टिेनेंट के पद पर फौज में है। इनकी पांच पीढ़ियां देश सेवा कर रही है। इसके अलावा गांव के बिग्रेडियर अहमद अली खां के बेटे सत्तार खां और इनके भाई निसार खां देश सेवा में हैं। सत्तार खां का बेटा गफ्फार खान व जब्बार खान तथा निसार खां का बेटा इरसाद खां सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

गांव वालों की मांग

गांव की सरकारी स्कूल पर शहीद के नाम का उल्लेख होने से ही अहसास होता है कि धनूरी शहीदों का गांव है। गांव के लोगों को मांग है कि राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय के बोर्ड पर तो श-हीद मेजर एमएच खान का नाम है, लेकिन कागजो में आज भी यह स्कूल वीर चक्र विजेता श-हीद के नाम नहीं हो सका है।

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