देश की इस बेटी ने बचपन में नंगे पैर दौड़कर 5 गोल्ड मेडल जीते, अब योग्यता के चलते DSP बनी

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Hima Das
Success Story Of Hima Das who appointed as DSP in Assam Police. Athlete Hima Das appointed Deputy Superintendent of Police of Assam.

Photo Credits: Twitter

Delhi: पूरी दुनिया खिलाड़ियों से भरी हुई है। खेल लोगोंको मनोरंजन का साधन लगता है, परंतु इसी खेल ने कइयों की जिंदगी पलट कर रख दी। बच्चा पैदा होते ही हाथ पैर चलाना शुरू कर देता है। तभी माता पिता कहते है बड़ा होकर खिलाड़ी बनेगा।

भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है इसके अलावा भी बहुत से खेल है, जो नेशनल लेवल पर खेल जाते है। जैसे फुटबॉल, वॉलीबॉल, टेबल टेनिस, बैडमिंटन क्रिकेट आदि। क्रिकेट का तो बच्चा बच्चा फेन है। किसी भी कला में महारत हासिल करनी है तो उसके लिए आपको बार बार प्रयास करने पड़ते है आप गिरोगे भी हारोगे भी परंतु आपको निरंतर प्रयास करने होते है। आपकी यही मेहनत एक दिन पूरी दुनिया में आपका नाम बना देगी।

आज की यह पोस्ट भारत की एक ऐसी बेटी की है, जो बचपन में नंगे पैर दौड़ती थी। पिता के सपोर्ट से वो उस मुकाम तक पहुंची जिसकी वो हकदार है। भारत की इस बेटी को डिंग एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने एथलेटिक के दौड़ कला में महारत हासिल की हुई है। तो आइए जानते है इनके बारे में।

खिलाड़ियों को अपना नाम बनाने के लिए गेम चेंजर बनने की जरूरत होती है

दुनिया में कई खिलाड़ी है जो देश विदेश में अपने नाम का परचम लहरा रहे है। इन खिलाड़ियों में देश की बिटिया ज्यादा है पीवी सिंधु, सायना नहवाल, हेमदास। इन्होंने कई गोल्ड, सिल्वर, ब्रांच जैसे कई सारे मेडल जीते है, यदि खिलाड़ी एक बड़ा मुकाम दुनिया में बनाना चाहते है, तो उन्हें गेम चेंजर बनना पड़ता है।

सफलता एक रात की कहानी नहीं होती बल्कि कई बार गिरकर खड़ा होना का नाम है। तभी तो दुनिया उनको उनके नाम से जानती है। ऐसे ही एक मिशाल है, असम की क्वीन हिमा दास (Hima Das)। जो एक गरीब परिवार की बेटी है। खेतों में नंगे पैर दौड़कर अथिलीट में अपना नाम बनाया इसके बाद वे असम की डीएसपी (DSP) बनी।

हिमा दास का संक्षिप्त परिचय

हिमा दास का जन्म असम (Assam) राज्य के नौगांव जिले के अंतर्गत आने वाले ढिंग नाम के गांव में 9 जनवरी वर्ष 2000 में हुआ था। हिमा एक संयुक्त परिवार से है उनके परिवार में 16 सदस्य हैं। जिसमे वे 5 भाई-बहन हैं। हिमा के पिता पेशे से एक किसान थे। उनके पास मात्र 2 बीघा जमीन थी। जिसमे वे फसल उगा कर अपने परिवार को पलते थे।

हिमा के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई थी। हिमा पढ़ाई लिखाई में अच्छी नहीं थी, क्योंकि उनका मन केवल खेलो में लगता था। खेलो को उन्होंने अपनी प्राथमिकता बना ली थी। इसके लिए उनके पिता हमेशा उनका साथ देते थे। जान कर हैरानी होगी कि हिमा के पहले गुरु उनके पिता ही है। उन्होंने कई वर्षो तक सुबह 4 बजे उठकर अपने ही धान के खेतो में दौड़ती रही।

खेतो में खेली है फुटबॉल

हिमा के गांव में कोई खेल का मैदान नही था। जिससे वे अपने ही खेत में फुटबॉल खेला करती थी। उनकी खेल के प्रति रुचि देखकर एक दिन उनके शिक्षक ने उन्हें दौड़ने का सजेशन दिया। वे अपने गुरु की बात मान कर रोजाना प्रेक्टिस करने लगी।

एक बार उनके कोच निपुण दास ने उन्हें एक प्रतियोगिता ने भाग लेने को कहा तो उनकी बात मान कर हेमा ने जिला स्तर की 100 और 200 मीटर की दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उनके जितने पर उन्हे गोल्ड मेडल दिया गया। यहीं शुरूआत थी हेमा के एथलेटिक करियर की।

हिमा को काफी सारे सम्मानों से सम्मानित किया गया

हिमा दास की मेहनत, काबिलिया और शानदार प्रदर्शन से उन्हें कई सारे अवार्ड से नवाजा गया। खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाने वाला अर्जुन अवॉर्ड भी हेमा दास को दिया गया। इसके साथ ही उन्हें असम पुलिस में डीएसपी के पद पर नियुक किया।

इस खास मौके पर हिमा कहती है की उनका बचपन का सपना सच हो गया है। उनका सपना बचपन से ही पुलिस अधिकारी बनने का थी। और असम पुलिस में भर्ती होकर उन्होंने अपने साथ अपनी मां का सपना भी पुरा किया।

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