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Raipur: मां शब्द ममता से भरा हुआ है, एक बच्चे के लिए मां क्या होती है, वही जानता है यह जरूरी नहीं होता कि बच्चा किसी महिला के पेट से जन्मा हो तभी वह मां कहलाएगी पालन-पोषण करने वाली महिला भी उस बच्चे की मां का दर्जा रखती है।
यदि हम बात करें हिंदू धर्म के भगवान श्री कृष्ण की तो श्री कृष्ण को जन्म देने वाली मां देवकी थी और पालन करने वाली मां यशोदा। मां यशोदा श्री कृष्ण को अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यार करती थी और उनकी देखभाल करती थी। ऐसे ही समाज में कई उदाहरण हैं, जिन्होंने कभी भी अपने कोख से एक भी बच्चे को नहीं जन्मा उसके बाद भी वे मां कहलाए।
बांझपन समाज की एक विकट समस्या
आज के समय में खानपान या फिर किसी अनुवांशिक समस्या के चलते भारत देश की 100 में से 10 महिलाएं मां बनने का सुख प्राप्त नहीं कर पाती। वे महिलाएं अपने बच्चों के लिए तरसती है। यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो इस क्षेत्र में भी विज्ञान ने तरक्की की है।
यदि बांझपन को समस्या ना समझते हुए एक सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो सही भी है, क्योंकि देश में यदि 10 महिलाएं मां नहीं बन सकती, तो 90 महिलाएं दो से तीन बच्चे को जन्म देती हैं और कुछ क्षेत्रों में तो ऐसा भी है, जो बेटे की चाह में 3 से अधिक बच्चों को जन्म देती है।
इसके साथ ही समाज में कुछ ऐसे परिवार भी है, जो बच्चों को सही परवरिश नहीं दे पाते, जिसके कारण बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं यदि यह 10 महिलाएं गरीबों के बच्चों को या अनाथालय के बच्चों को सही परवरिश देते हैं, तो हमारे देश में गरीबी कम होगी और सड़क पर दर-दर की ठोकरें खाने वाले बच्चों को एक परिवार का नाम मिल जाएगा।
छत्तीसगढ़ की अरुणा की कहानी
आज हम इस लेख के माध्यम से आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप भी उस महिला के काम की सराहना करेंगे। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) राज्य की राजधानी रायपुर (Raipur) की निवासी अरुणा (Aruna) आज समाज के लिए बेहतरीन काम कर रही है।
पिछले 15 वर्षों में उन्होंने 21 बच्चों को परवरिश देकर उन्हें ऐसा जीवन दिया, जिसकी शायद उन्हें उम्मीद भी नहीं थी। आपको बता दें अरुणा अनाथ और अनाथालय के बच्चों को परवरिश देती है और उनका पालन पोषण करती है।
अरुणा का मानना है कि अनाथालय में बच्चों को उम्दा परवरिश नहीं मिल पाती जिसके कारण वे समाज से पिछले प्रतीत होते हैं, इसलिए उन्होंने अनाथालय और कई अनाथ बच्चों को अपने घर में शरण दी और उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया। वैसे देखा जाए, तो अरुणा आज तक एक बच्चे को भी अपनी कोख से नहीं जन्मा इसके बाद भी वह आज 21 बच्चों की मां कहलाती है।
अरुणा की निजी जिंदगी का सच
आपको बता दें अरुणा को उनके पति से उन्हें एक बच्चा हुआ, लेकिन बच्चे के जन्म के कुछ महीने बाद पति पत्नी की अनबन के चलते अरुणा और उनके पति के बीच तलाक हो गया। आर्थिक मजबूती को देखते हुए बच्चे की देखरेख का जिम्मा अरुणा के पति को मिली, जिसकी वजह से अरुणा को अपने बच्चे को अपने से दूर करना पड़ा।
अरुणा आगे बढ़ना चाहती थी, इसलिए उन्होंने पुलिस की नौकरी करके अपने जीवन को चलाने का विचार किया, परंतु उन्हें पुलिस की नौकरी नहीं भाई। इसके बाद उन्होंने समाज सेवक करके अपने मन को और जीवन को खुश रखने का निर्णय लिया और आज वे बहुत अच्छी समाजसेवी है और ममता से भरी हुई मां भी।
अनाथ को बेहतर जिंदगी देने वाली अरुणा
देश में और देश के बाहर भी कई लाखों-करोड़ों ऐसे बच्चे हैं, जो रेलवे स्टेशनों मंदिरों और सड़कों पर भीख मांगते हुए या फिर छोटा-मोटा कोई काम करते हुए नजर आते हैं। उन्हें देखकर मन में टीस सी उठती है और ऐसा लगता है कि काश हम इनके लिए कुछ कर पाते कहते हैं।
ईश्वर ने माता-पिता को इस लिए बनाया है कि वे अपने बच्चों की देखभाल बेहतर तरीके से कर सके, परंतु जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते वे अनाथ हो जाते हैं और सड़कों पर ठोकर खाने के लिए मजबूर भी होते हैं। समाज को अरुणा जैसी महिलाओं की जरूरत है, जिससे समाज में सुधार हो सके।
आज अरुणा 9 बच्चों को पाल रही है और पिछले 15 वर्षों में उन्होंने 21 बच्चों की परवरिश करके उन्हें एक बेहतर इंसान बनाया है। कहीं ना कहीं अरुणा भी अपने इस कार्य से बेहद सुकून का अनुभव करती है।



