एक किसान ने 3 एकड़ बंज़र ज़मीन को बनाया चंदन, महोगनी और फलों का बागान: Earn In Farming

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Lakshmikant Hibare Farmer
A matriculate progressive farmer Lakshmikant Hibare from Hagarga village Karnataka converts barren land into a self-sustainable green farm.

Hagarga village Karnataka: कर्नाटक के कलबुर्गी में रहने वाले सफल किसान लक्ष्मीकांत हिबारे चंदन, मोरिंगा, आंवला, अमरुद, मौसम्बी, महॉगनी, और संतरा जैसे पेड़ों के साथ-साथ, मौसमी सब्ज़ियाँ उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन, हिबारे की इस मुक़ाम तक पहुँचने की राह बिल्कुल भी आसान नहीं थी। जिस ज़मीन पर वह आज तरह-तरह की फसलें उगा रहे हैं, वह कभी बंजर (Banjar Zameen) हुआ करती थी। उनके इलाके में पानी की भी कमी थी, पर अपनी मेहनत और लगन से, हिबारे ने इस जगह को हरियाली से भर दिया है।

आज दूसरी जगहों से भी किसान, उनके खेतों को देखने, और उनकी खेती के तरीकों को सीखने आते हैं। एक दिलचस्प बात यह भी है कि, खेती के साथ-साथ वह एक प्राइवेट स्कूल में बतौर टाइपिस्ट नौकरी भी करते हैं। कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में, हागरगा गाँव (Hagarga village) के रहने वाले लक्ष्मीकांत हिबारे (Lakshmikant Hibare) एक प्रगतिशील किसान (Farmer) हैं।

पिछले कई वर्षों से, वह जैविक तरीकों से खेती कर रहे हैं और उन्होंने खेती (Farming) के लिए जंगल (Jungle) पद्धति अपनाई हुई है। इस तरीके (Tips) से वह, कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा (Good Earning) लेते हैं। साथ ही, वह अपने प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, पानी का संरक्षण कर रहे हैं। उनकी पहचान आज एक सफल किसान (Successful Farmer) के तौर पर है, और उन्हें कई कृषि आयोजनों में सम्मानित भी किया गया है।

अपनी अधिकतर बंजर ज़मीन का सही उपलोग किया

हिबारे (Lakshmikant Hibare) के पिता की कुल ज़मीन लगभग 7 एकड़ थी। जिसमें से सिर्फ तीन-साढ़े तीन एकड़ ज़मीन ही उपजाऊ थी और बाकी बची तीन एकड़ ज़मीन बंजर। वह कहते हैं कि, पहले वह उपजाऊ ज़मीन (Good Farming Land) पर ही खेती करते थे। लेकिन फिर जैसे-जैसे परिवार आगे बढ़ा, तो पिता की ज़मीन दोनों भाइयों में बट गयी। बटवारे में, बंज़र ज़मीन हिबारे के हिस्से में आई।

वह बताते हैं, ‘साल 2008-09 की बात है, जब मैंने उस ज़मीन पर जीरो से शुरुआत की थी। लोगों को लगता था कि मैं यह नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि वहां बरसों से कुछ नहीं उगा था। लेकिन मैंने ठान लिया था कि, मैं इस ज़मीन को खेती के लायक बनाकर ही रहूँगा।’ सबसे पहले, उन्होंने इस ज़मीन को समतल किया।

ज़मीन की मिट्टी को उर्वरक बनाया

हिबारे बताते हैं कि इस काम में उन्हें लगभग 15 से 20 दिन लग गए। इसके बाद, उन्होंने ज़मीन की मिट्टी को उर्वरक बनाया। वह कहते हैं, मिट्टी को उर्वरक बनाने का सबसे अच्छा तरीका होता है कि जैविक खाद द्वारा भरण किया जाए। अगर हम रसायन का प्रयोग करते, तो कुछ समय के लिए आपको नतीजे अच्छे मिलेंगे।

मगर फिर यह आपकी ज़मीन बिल्कुल बर्बाद कर देगा, और हर साल, आपकी न सिर्फ लागत बढ़ेगी, बल्कि उपज की गुणवत्ता और मात्रा भी घट जाती है। इसलिए, मैं मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए, गोबर, गौमूत्र, और नीमखली आदि का प्रयोग करता हूँ। ज़मीन तैयार करने के बाद, इस पर क्या बोया जाए, यह सबसे बड़ी समस्या थी। इस बारे में उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारीयों से सलाह ली। उनकी सलाह पर, उन्होंने सामान्य फसलों की बजाय, जंगल पद्धिति से फसलें को उगाने का फैसला किया।

निम्बू के पेड़ भी लगाए

उन्होंने अपने यहां के वन विभाग और हिमाचल प्रदेश के कुछ किसानों से 3000 से भी ज़्यादा पौधे खरीदें तथा उनको बोया। इनमें, चंदन, रक्तचंदन, मोरिंगा (सहजन), आंवला, अमरुद, थाई मौसम्बी, महोगनी, संतरा और मालाबार नीम जैसे कई पेड़ शामिल हैं। खेत के चारों तरफ सीमारेखा पर, उन्होंने निम्बू के पेड़ भी लगाए हुए हैं।

उन्होंने आगे कहा सभी पेड़ों को एक उचित दूरी पर भी लगाया गया है। इनके बीच में, मैं मौसमी सब्ज़ियों व फूलों का उत्पादन करता हूँ। फलों, फूलों तथा सब्ज़ियों से मुझे हर मौसम में कमाई मिलती है। चंदन जैसे पेड़, भविष्य के लिए कमाई भी देते हैं। हिबारे आगे कहते हैं कि, उनके इलाके में पानी की भी एक समस्या है। इसलिए, शुरुआत में ही, उन्होंने ‘ड्रिप इरीगेशन सिस्टम’ लगवाया।

जल-संरक्षण के लिए एक तालाब भी बनवाया

इसके अलावा आज उनके खेतों में बोरवेल और जल-संरक्षण के लिए एक तालाब भी बनवाया है। उनकी कोशिश, कम से कम पानी में अच्छी फसल उगाने की रहती है। उन्होंने बताया, “मैंने शुरू से ही, पानी के संरक्षण के महत्व को समझा। क्योंकि जब मैंने पहली बार पौधे लगाए, तो उसके दो साल बाद, हमारे यहां सूखे की स्थिति हो गई थी। मैंने पौधे खरीदने, और लगाने में काफी पैसा खर्च किया था। अगर पानी की वजह से पेड़ मर जाते, तो मुझे बहुत नुकसान होता।” उस गंभीर स्थिति में भी, हिबारे ने सूझबूझ से काम लिया।

उन्होंने प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा कीं, और इनके ढक्कनों में छेद किया। वह इन बोतलों में पानी भरते, और पेड़ों के पास हल्का-सा गड्ढा कर, इन्हें उल्टा करके लगा देते। इससे पेड़ों को धीरे-धीरे, लेकिन लम्बे समय तक पानी मिलता रहता था। इसके अलावा लंबे समय तक मिट्टी में नमी भी रहती थी। इस काम में काफी मेहनत तो थी, लेकिन उन्होंने अपने लगभग सभी पेड़ों को बचा भी लिया।

पानी और सिंचाई के लिए सही तकनीक अपनाई

आज उनके पास पानी के कई साधन हैं, लेकिन फिर भी वह पेड़ों की ज़रूरत के हिसाब से ही पानी देते हैं। ‘ड्रिप इरीगेशन सिस्टम’ से खेतों में पानी दिया जाता है, और वह ‘मल्चिंग तकनीक’ भी अपनाते हैं। उनके खेतों में, जो भी कृषि अपशिष्ट होता है, वह उन सभी को फेंकने या जलाने की बजाय, उससे खाद बनाते हैं। इसके अलावा, वह दूसरी जगहों पर इकट्ठा होने वाले जैविक कचरे को भी अपने खेतों में खाद बनाने के लिए उपयोग करते हैं।

उन्होंने बताया की अगर हम अपने आस-पास देखें, तो आपको बहुत जैविक कचरा मिल जाएगा। मैं इस तरह के कचरे को इकट्ठा करके, अपने खेतों पर ले आता हूँ, और फिर इसमें से, प्लास्टिक, पॉलिथीन जैसी चीज़ों को निकालकर, इसे खाद बनाने के लिए उपयोग में लेता हूँ। मैं मछलियों के अपशिष्ट का भी उपयोग करता हूँ, जिससे बहुत पोषक खाद तैयार होती है।

शुरू की नर्सरी

जंगल पद्धिति से खेती में सफलता (Success in Farming) के बाद, उन्होंने दूसरी तकनीकों पर भी काम करना शुरू किया है। पिछले कुछ समय से, वह खेती से ही जुड़े अलग-अलग कार्यों में रुचि ले रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने अपने खेतों पर ही, एक नर्सरी शुरू की। यहां वह चंदन, कांटीकरंज, और महॉगनी के पौधे तैयार करते हैं। नर्सरी के साथ-साथ, उन्होंने मुर्गीपालन और मधुमक्खी पालन भी शुरू किया है।

हिबारे कहते हैं, मैं अलग-अलग प्रकार की चीज़ें करने में रूचि रखता हूँ। सामान्य खेती के साथ, इस तरह के प्रयोग अगर हम किसान करें, तो अपनी आय को काफी बढ़ा सकते हैं। अगर कभी आपकी फसल से भी आपको उत्पादन न मिले तो, दूसरी जगहों से आपको आय ज़रूर मिलेगी। इसलिए, मैं हमेशा नई चीज़ें सीखने को तत्पर रहता हूँ। कुछ समय पहले मैंने, राष्ट्रीय बांस अभियान के तहत भी ट्रेनिंग ली है।

मंडी के अलावा ग्राहकों से सीधा जुड़ते है

मार्केटिंग के लिए, हिबारे सिर्फ मंडी पर निर्भर नहीं रहते हैं। वह ग्राहकों से सीधा जुड़ते हैं और उन तक अपने फल-सब्ज़ियां व अन्य उत्पाद पहुंचाते हैं। इससे ग्राहकों को अच्छा तथा स्वस्थ खाना मिलता है, और हिबारे को अच्छी आय भी हो जाती है। वह बताते हैं, ‘मैं कई व्हाट्सएप ग्रुप्स से जुड़ा हुआ हूँ, जो सिर्फ फल-सब्ज़ियों की बिक्री के लिए हैं।’ इनमें लगभग 1000 लोग हैं, जो नियमित रूप से फल-सब्ज़ियाँ ऑर्डर करते हैं।

सालभर कमाई होती है

कमाई के बारे में, हिबारे कहते हैं कि, जिस तरीके से वह खेती कर रहे हैं, इससे उन्हें सालभर कमाई होती है। हर मौसम में, उन्हें अपनी किसी न किसी फसल से आय मिलती है। अमरुद से उन्हें लगभग 50 हज़ार रुपए की कमाई होती है, तो वहीं, मोरिंगा से वह एक मौसम में, डेढ़ लाख रूपये तक कमा लेते हैं। नर्सरी में, वह हर साल लगभग 10 हज़ार पौधे तैयार करते हैं, जिन्हें वह दूसरे किसानों को बेचते हैं।

वह कहते हैं, इस तरह से खेती करने में मेहनत काफी है। लेकिन शुरुआत में, आपको यह मेहनत लगती है। क्योंकि जैविक खेती में, जब आपको अपने खेत से अच्छा उत्पाद मिलने लगता है, तो आप नये-नये प्रयोग करने तथा सीखने के लिए उत्साहित रहते हैं। शुरुआत में किसानों को यकीन ही नहीं होता है कि, वे इस तरह से भी पैसे कमा सकते हैं। लेकिन मैं कहता हूँ कि, आप अपनी खेती की समस्याओं का हल ढूंढें, और दिन-रात मेहनत करें, आपको सफलता अवश्य मिलेगी।

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