
Kaithal: आज के समय में किसानो को खेती करना काफी महंगा पड़ रहा है। इसका कारण चीजों का महंगा होना तो है ही इसका असल कारण यह भी है कि जो किसान अपने खेत में पहले से जिस चीज की खेती कर रहे थे। वही वह हर साल आज भी करते है।
इसके कारण उनको ज्यादा पैदावार नहीं मिलती और उनको प्रॉफिट लागत से ज्यादा नहीं मिल पाता। जबकि किसान भाइयों को खेती बदल-बदल कर करना चाहिए। खेती बदल कर लगाई जाए, तो मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, और फसल भी अच्छी होने की संभावना रहती हैं।
परंपरागत खेती को छोड़ सब्जी लगाया एक किसान ने
आज की हमारी कहानि ग्राम पवनावा जिला कैथल (Kaithal) में रहने वाले अनिल कुमार (Anil Kumar) नाम के एक शख्स की है। जिसने अपनी परंपरागत खेती को छोड़ सब्जी करने की सोची और उनका यह सोचना उनके लिए फायदे का सौदा भी साबित हुआ। हम जो भी काम करने की अपने जीवन मे सोचते हैं, उसमे थोड़ी दिक्कतो का सामना तो हमे करना ही पड़ता है। कुछ ऐसी ही दिक्कतों का सामना अनिल को भी करना पड़ा।
2 लाख रुपए के खर्चे मे 4.5 लाख की कमाई हुई
अनिल ने 2.5 एकड़ की भूमि में सब्जी उगाई। जिसमे करेला, घीया (लौकी), बीच-बीच मैं टमाटर, तथा ककड़ी (खीरा) इन्हें उन्होंने लगाया और खेती की। ये फसल उन्होने अप्रैल-मई के महीने मे लगाई। करीब ढाई महीने बाद फसल आ गई। फिर उन्होंने अपनी फसल को बेचना शुरू कर दिया।

अब तक की बात करे तो 4.5 लाख रुपए की सब्जी ये किसान बैच चुके है। इस पर उन्होंने लाखो का फायदा मिला, क्योंकि उन्हें करीब 2 लाख रूपए का ही खर्चा इस खेती पर आया था। इस किसान ने सिर्फ 2.5 महीने मे ही साढ़े चार लाख रूपए तक की कमाई कर ली और वह कम समय मे ही लाखो की कमाई करने वाले किसान बन गए।
आइए जानते है कैसे की अनिल ने आधुनिक खेती
ढाई एकड़ की जमीन मे घीया (लौकी) और टमाटर की खेती करने के लिए पहले जमीन तैयार करनी होती है। अनिल ने जमीन मे पहले पाइप लाइन बिछाई। वायर लगाए। फिर बम्बू तैयार किया।
फसल लगाने के बाद मेल्चिंग करना पड़ता है। मेल्चिंग करने से मिट्टी में नमी बनी रहती है तथा खरपतवार दब जाते है। खीरा और करेले की खेती को अनिल जी द्वारा अप्रैल-मई के महीने मे लगाई गई।

ये फसल दिसंबर तक चलती है। बीच-बीच में लगाई गई खीरे और टमाटर की फसल जो सैलेड के रूप में ज्यादा उपयोग मे लाई जाति है। इनकी कीमत अच्छी मिलती है। जब टमाटर और खीरा ज्यादा बिकता है, तो किसान को प्रॉफिट भी ज्यादा मिलता है।
अनिल ने परंपरागत खेती को छोड़ कुछ नया किया, इससे अन्य किसानों को प्रेरणा मिली
डाक्टर प्रमोद कुमार जो एक बागवान अधिकारी है। उन्होने बताया की एक ही प्रकार की खेती हमेशा हमेशा करने से मिट्टी की गुणवत्ता खतम हो जाती है। इसलिये किसानो को अलग-अलग प्रकार की खेती अपनी ज़मीन पर करते रहना चाहिए। जिससे जमीन की गुणवत्ता बनी रहे।

कई बार ऐसा होता है कि एक ही प्रकार की खेती हमेशा करने से मिट्टी की गुणवत्ता खतम हो जाती है। अधिकारी प्रमोद कुमार ने यह भी बताया कि सरकार अब वह किसान जो परंपरागत खेती छोड़कर बागवानी सभी की खेती करना चाहते हैं, उन किसानो को प्रोत्साहन राशि देती है। जिससे कि उनका उत्साहवर्धन होता रहे।
आपको बता दे कि प्रोत्साहन राशि मे किसानो को सब्सिडी के नाम पर प्रथम वर्ष 30 हजार रुपए तथा दुतीय और तृतीय वर्ष 10-10 हजार रूपए एक एकड़ में प्रदान किए जाते है। इसी प्रोत्साहन राशि से किसान बागवानी सब्जी की खेती करने के लिए आकर्षित होते है।



