इन राजा ने बाँध को प्राचीन भारत की अध्भुत तकनीक से बनाया था, 10 लाख एकड़ की सिंचाई करवाता है

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Kallanai Dam Story
All Info about Kallanai Dam in Tamil Nadu constructed by Karikalan Chola king. Its still operational in kaveri river.

Tiruchirapalli: आज हमारे देश में बहुत इंजीनियर हैं। पहले के ज़माने में इंजीनियर बनना भी बहुत कठिन था, तब एक भारतीय इंजीनियर बना था। भारत रत्‍न से सम्‍मानित मोक्षगुंडम विश्‍वेश्‍वरैया की जयंती के उपलक्ष्‍य में 15 सितंबर को पूरे भारतवर्ष में इंजीनियरर्स डे मनाते है। विश्‍वेश्‍वरैया मैसूर के दीवान थे। उनको एक अभियंता के तौर पर पूरे भारत में याद किया जाता है।

विश्‍वेश्‍वरैया का जन्‍म कर्नाटक राज्‍य में मुदृदेनाहल्‍ली में हुआ था। इस साल 15 सितंबर को उनका 160 वां जयंती मनाया गया। भारत के बहुत से बांध पर उनके ड्रेनेज सिस्‍टम की छाप है। जेसे मैसूर में स्थित कृष्‍णराज सागर बॉंध, ग्‍वालियर में स्थित तिघरा बॉंध तथा बहुत से क्षेत्र के सिंचाई विभाग।

एक ऐसा बॉंध जो 1850 साल से दे रहा अपनी सेवा

हमे यह हमेशा याद रखना चाहिए कि महाभारत, रामायण काल से लेकर मौर्य, गुप्‍त तथा हड़प्‍पा काल में भी भारत अभियंता के क्षेत्र में इस दुनिया के दूसरे भागो से काफी ज्‍यादा आगे था। क्‍योंकि हमारे देश में ऐसे बहुत से बॉंध अभी भी है, जोकि कई दशको से जस के तस संचालित हो रहे है।

उनमे से एक बॉंध ऐसा भी है, जोकि 1850 सालों से अपनी सेवा प्रदान कर रहा है। यह बॉंध सन 150 में बना था। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि पहले भी भारत में ऐसे इंजीनियर थे जोकि इतनी मजबूती से चीजों का निर्माण करते थे।

हम जिस बॉंध (Dam) के विषय मे आपको बता रहे है, वह अपनी उत्‍कृष्‍ट कलाकृति के लिये लोगो के बीच आकर्षण का केंन्‍द्र है। यह बॉंध पूरे दुनिया का चौथा नंबर का सबसे पुराना वाटर रेगूलर तथा वाटर डायवर्सन है।

चोल शासक करिकाल ने बनाया था यह बॉंध

यह बॉंध जिसकी हम बात कर रहे है, वह राज्‍य तमिलनाडू के तिरूच्चिराप्‍पल्‍ली में कावेरी नदी (Kaveri River) पर बना है। इस बॉध को The Grand Anicut कहते है। इस बॉंध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था। यह बॉंध तंजावुर से 45 किलोमीटर तथा तिरूच्चिराप्‍पल्‍ली से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। बड़े क्षेत्र में सिंचाई करने के उद्देश्‍य से इस बॉंध को बनाया गया था।

राजा करिकाल जिन्‍होंने अपनी बहादूरी से दुश्‍मन का किया नाश‍

राजा करिकाल (King Karikalan) चोल राजवंश (Chola Dynasty) के बहुत ही महान शासक थे। वह संगम साहित्‍य में महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखते थे। उनका पॉंव बचपन में ही जल गया था। उनके नाम करिकाल का अर्थ हाथियों का संहारक होता है।

जब वह बहुत छोटी उम्र के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। जिस वजह से उन्‍हें देश से निकालकर जेल में डाला गया था। परन्‍तु वह बहादुर वीर थे। इस कारण वह दुश्‍मनो का नाश कर पाये ओर अपना राज फिर से स्थापित कर पाये।

कल्‍लानाई बॉंध का 12000 श्रीलंकाई मजदूर से करवाया निर्माण

वैन्‍नी के युद्ध में इन्‍होने पंडया तथा चेर के राजा को हराया था। जीत के बाद करिकाल दक्षिण भारत में प्रसिद्ध हो गये। वह ऐसे राजा थे, जो कि श्रीलंका को पूरा जीत पाने में सफल हुये थे। उन्‍होंने कल्‍लानाई बॉंध (Kallanai Dam) को बनवाने के लिये श्रीलंका के ही मजदूरो को उपयोग में लाया था।

कहते है कि इस बॉंध के निर्माण के समय में 12000 श्रीलंकाई मजदूर लाये गये थे। उन्‍होंने ही बाढं से बचने, पानी कि दिशा बदलने तथा सिंचाई व्‍यवस्‍था के लिये पत्‍थरों कि उँची दीवारो का निर्माण किया था।

इस बॉंध के निर्माण के समय में एक विशाल पत्‍थर को सही आकार देकर कावेरी नदी की सबसे मुख्‍य धारा में बीचो बीच रखा गया था। यह पत्‍थर 1080 फीट लंबा तथा 60 फीट चौडा था।

इस बॉंध से 10 लाख क्षेत्र की होती है सिंचाई

यह एक प्रकार से चेक डैम के समान है। इस बॉंध को पूरी तरह से पत्‍थर और कंक्रीट से बनाया गया है। इसका गहन अध्‍ययन करना अब काफी मुश्‍किल है, क्‍योंकि अंग्रेज जब आये, तो उन्‍होंने इसके आस पास कई विभिन्‍न संरचनाए बना दी। इस बॉंध के पानी को दूर गॉंव में भेजा जाता है। प्रारंभ में इस बॉंध से 69000 एकड़ क्षेत्र को सींचा जाता था। अभी कि बात करें तो इससे 10 लाख एकड़ के क्षेत्र को सींचा जाता है।

बहुत सी अनोखी विशेषता है इस डेम की

बहुत से सिविल इंजीनियर यह मानते है कि इसकी चिनाई जो कि काफी टेढ़ी मेडी है वह इसका अनोखा मूल डिजाइन है। इस बॉंध में स्‍लोप के शेप का पत्‍थर लगा हुआ है। इसके आगे पीछे में ढलाई बनी है। इस बॉध से कोल्‍लीडम नदी में कावेरी नदी का पानी पहँचाया जाता है।

जब पानी का स्‍तर नदी में बढ़ जाता है, तो कोल्‍लीडम में नदी चौड़ी होती है। सिविल इंजीनियर की लेग्‍वेज में इसे फ्लड केरियर कहते है। पहले बाढ़ के समय में कोल्‍लीडम का सारा पानी समुद्र में जाता था।

इस कारण किसान की फसल बर्बाद हो जाती थी। विशेषज्ञ कृष्‍णन कहते है कि यह बॉंध अच्‍छे से कार्य करता है। यह बॉंध प्राकृतिक बलों को काबू करता है तथा अवसादन कि क्रिया, पानी की धारा को न्‍यू शेप देता है।

आर्थर कॉटन ने नकल कर बनाया था दूसरा बॉंध

इस बॉंध के पास में ही ऑर्थर कॉटन की एक मूर्ति स्‍थापित कि गई है। ऑर्थर कॉटन ने इस बॉध कि ही तरह एक दूसरा बांध निर्मित किया था। यहॉं एक भव्‍य मेमोरियल भी स्‍थापित है।

यह बॉध एक बडें क्षेत्र को बाढ़ से बचाता है तथा किसानों को सिंचाई के लिये पानी भी उपलब्‍ध कराता है। इतने पुराने समय में भी इस तरह के बांध् का होना बहुत ही आश्‍चर्य करने वाली बात है। पुराने दूरदर्शी शासक तथा महान इंजीनियरों का ही परिणाम है कि ऐसा बॉंध हम देख पाये है।

कल्‍लानाई बॉंध में मास तथा ग्रेविटी को बढाने के उदृदेश्‍य से बड़े बड़े पत्‍थर नदी में डाले गये। उसके बाद में छोटे छोटे पत्‍थर डालकर चिनाई का आधार बनाया गया। फिर उसकी दीवार बनाई गई। जब इस बॉंध को अंग्रेज ने देखा तो वह अचंभित हो गये थे। ऑर्थर कॉटन ने इस बॉध कि नकल करते हुये 19वी शताब्‍दी में ऐसा ही बॉंध निर्मित किया था।

इस तरह इस बांध को देखने जा सकते है (How To Visit Kallanai Dam)

इस बॉंध की खूबसूरती निहारने आप भी तमिलनाडू जा सकते है। इस बांध के नजदीक का रेल्‍वे स्‍टेशन लालगुडी है। वह बांध से 4 किमी के डिस्‍टेंस पर है। थोगुर गॉव पर बॉध स्थित है। तिरूचिरापल्‍ली एयरपोर्ट (Tiruchirapalli Airport) इस बॉंध से 13 किमी के डिस्‍टेंस पर है।

यह संरचना उन लोगो के मुँह तमाचा है, जो भारत को असभ्‍य कहते थे। वह लोग जो मानते है कि भारत को सब कुछ बाहर से आये लोगों ने सिखाया है, उन्‍हें इस बॉंध को देखने अवश्‍य ही जाना चाहिए, इससे उनके मन कि शंका अवश्‍य दूर हो जायेगी।

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