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Chitrakoot: एक ज़माना था, जब बच्चे लकड़ी के खिलौने से ही खेला करते थे। पहले लकड़ी के खिलौने बनाते हुए सिर्फ पुरूष नजर आते थे, अब उन्हीं गलियों में महिलाएं भी बेजान लकड़ी को नया रुप और उनमें रंग भरकर आपने आप को आत्मनिर्भर बना रही है। महिलाएं लकड़ी के लट्टू, गुड़िया, सिंदूर दानी, डिबिया और दूसरे छोटे-मोटे खिलौने बनाना सीख रही हैं।
अधिकांश कलाएं (Arts) अब दम तोड़ चुकी हैं, लेकिन लकड़ी से बनी कलाओं को जीवंत रखने की कोशिश अभी भी जारी है। जानकारी के मुताबिक करीब 170 साल पहले देश में लकड़ी के खिलौने बनाने का व्यापार सबसे पहले उदयपुर में शुरू हुआ था।
फिर धीरे धीरे यह व्यापार देश के कुछ अन्य शहरों में भी फैला रहा है। बाद में स्थानीय परिस्थितियों और चीनी (China) खिलौने के बढ़ते प्रचलन से यह कला दम तोड़ गई। लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने एक बार फिर देश में बने खिलौने (Toys) के प्रोत्साहन की बात कहकर इन कारीगरों (Artisan) के चहरे पर फिर से मुस्कान दे दी है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में खोजवा समेत कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां बड़े पैमाने पर लकड़ी के खिलौने (Wood Toys) बनाने का काम होता है। काष्ठ शिल्प कारीगर (Wood Artisans) बनने का प्रशिक्षण कर रही महिलाओं को 300 रुपए प्रति दिन मजदूरी भी दिया जाता है।
इस विषय पर अधिकतर गाव के ठाकुर और ब्राह्मण प्रारंप्रगत रूप से इसकी प्रैक्टिस करते आ रहे है। एक तरफ भगवती सिंग के पिता बिहारी सिंग जाने माने हस्तशिल्प कला के आचार्य थे।
भगवती सिंग का कहना है कि उनके पिता का ही यह सिखाया हुई विद्या है, जिससे चाचा जी और पिता जी ने मिलकर करीब 10 वर्ष के उमर से ही इस हस्त शिल्प कला में रंग में उमंग भरना आरंभ कर दिया था।
वे लोग काट कर देते थे और हम लोग रंग में उमंग भर दिया करते थे। कास्ट शिल्प में कलर भरने का काम किया करते थे। खिलौने में और पट्टियों में मशीन के द्वारा कलर किया जाता था।
चित्रकूट (Chitrakoot) शहर में अब गिने चुने घरों में ही खिलौने मशीन की आवाज सुनाई देती है। अब बड़ी मुश्किल से ही कोई ऐसा घर बचा होगा, जिसमें लकड़ी के खिलौने की आवाज सुनाई देती होगी। खिलौने के निर्माण कार्य के अतिरिक्त भगवती अपने आसपास के बच्चो को भी इस कला का ज्ञान देते रहते थे। हमारी पीढ़ी के गुजर जाने के पश्चात इन हस्त शिल्प कला के बारे में कोई नहीं जानेगा।
जितना भी हम अपनी हस्तशिल्प कला के प्रतिभा से धन अर्जित कर रहे है, यह हमारी प्रतिभा है। इसे हम कभी भी समाप्त नहीं होने दे सकते है। इन सब बातो का ही चिंतन करके ही अपने परिवार वालों से बात चीत करके अपने आपसास के बच्चों को घर पर ही हस्त शिल्प कला का ज्ञान देने का निर्णय लिया है।
वर्तमान में अभी 3 लोग है, जो इस कला को सीखने आते है। बीते कुछ सालों में चित्रकूट में लकड़ी का सामान बनाने और बेचने वाले 200 परिवारों की संख्या थी। जो अब कम होकर करीब 30 रह गई है।
हस्तशिल्पकार भगवती सिंह (Wood Artisan Bhagvati Singh) के पिता बिहारी सिंह भी वरिष्ठ शिल्प गुरु थे। शिल्पकारों को सरकार साल में सिर्फ एक बार 500 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी वाली दर से लकड़ी मुहैया कराती है। जो मात्रा सरकार को ओर से मुहैय्या कराई जा रही है।
Promoting Craft & Craftsmen !
Under #OneStationOneProduct initiative, a stall at Puri railway station has been set up to promote Patta Chitra, wooden toys and Applique work with the aim of boosting local art and artisans. #VocalForLocal pic.twitter.com/6pjkrauAzU
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) April 10, 2022
वह मात्रा वार्षिक जरूरत के लिए पर्याप्त नहीं होती है और रख-रखाव के लिए पर्याप्त जगह ना होने के कारण कारीगर पूरे साल के लिए एक साथ स्टॉक खरीद कर रखने में असमर्थ होते है। इसके अतिरिक्त जो लकड़ी इन्हें मिलती है, वह काफ़ी लंबे टुकड़ों में होती हैं, जिसका बस बाहरी छाल निकला होता है।
Promoting Local products & artisans in Puri !
To boost the sale of local products, Patta Chitra, Applique Works & Wooden Toys made by local artisans being sold at Puri Rly Stn under #OneStationOneProduct initiative. @DRMWaltairECoR @DRMSambalpur pic.twitter.com/IIeX4pxeI4
— East Coast Railway (@EastCoastRail) April 11, 2022
कारीगरों को इसके बाद लकड़ियों के बाहरी परत को अच्छे से छीलकर, नक्काशी के लिए स्वंय ही पूरी प्रक्रिया को आकर देना होता है। आकृतियों को आकार देने के अंतिम स्टेप में लकड़ी को मशीन पर घिसना होता है।
The rich culture of #AndhraPradesh is diverse and vibrant. #Kondapalli, a small town near Vijaywada is known for wooden toys painted with vegetable dyes & vibrant enamel colours made by local artisans. This town is often called 'The Toy Town' of the state. #APfacts @AndhraTourism pic.twitter.com/uKdRjSC3uG
— Parimal Nathwani (@mpparimal) April 9, 2022
कारीगर एक छड़ी से चार छोटे खिलौने बना सकते हैं। इन वस्तुओं को ज्यादा लोगो तक पहुचाने के लिए ये प्रदर्शनियों के अलावा, शहर के तीर्थ जगहों पर दुकान लगाकर बेचते हैं। जिससे उनको इसका पर्याप्त मूल्य मिल सके। कारीगर की आँखों में खुशी साफ नजर आती है, जब वह अपने गोदाम में रखी हुई लकड़ी के चूड़ी स्टैंड, मूर्तियों, लट्टू, गाड़ियां, चाभी के छल्ले और अन्य खिलौने बेचने के लिये तैयार होते हैं।



