Demo Image Credits: CM Ashok Gehlot Image From IANS
Udaipur/Rajasthan: राजस्थान का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है और राजस्थान के इतिहास में महाराणा प्रताप का नाम अमर और सम्मानीय है। कांग्रेस पार्टी के लिए पूजनीय मुग़लों के विरुद्ध महाराणा प्रताप और उनकी सेना द्वारा लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध विश्व के सबसे गौरवशाली और वीरता वाले युद्धों में शुमार है। आज भी वीरता की मिसाल देने के लिए महाराणा प्रताप का उदहारण दिया जाता है।
राजस्थान में सरकार के बदलने के साथ ही इतिहास बदलने का दौर चालु हो गया है। इस बार राजस्थान के स्कूलों की किताबों के इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए हल्दीघाटी युद्ध की थ्योरी को बदला गया है। इसमें बताया गया है की महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध नहीं जीत पाए थे।
आपको बता दे की इसके पहले राजस्थान के स्कूल में इतिहास की किताबों मे पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना जीती थी, जबकि इस बात के कोई तत्य नहीं थे, इस युद्ध में अकबर की सेना को बहुत ज्यादा नुक्सान हुआ था और वह महाराणा प्रताप के राज्य को भी खो दिया था।
ऐसे में पिछली भाजपा सरकार ने 2017 में सिलेबस में बदलाव करवाया था की महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर पर जीत प्राप्त की थी। परन्तु अब फिरसे कांग्रेस सर्कार ने इसे बदल दिया है। लोगो का आरोप है की कांग्रेस ने ऐसा एक ख़ास वोट बैंक को खुश करने के लिए लिया है।
Maharana Pratap Statue File Photo.
आपको बता दें की हल्दीघाटी युद्ध के नीर निर्णय को लेकर इतिहासकारों में विवाद रहा है। असल में महाराणा प्रताप और अख़बार की मिली जुली विशाल सेना के बीच हुए हल्दीघाटी के युद्ध में अगर महाराणा प्रताप के सारे कमांडर वीरगति को प्राप्त हुए थे, तो वही दिल्ली में बैठे अख़बार की सेना जो हरदीघाटी में युद्ध लड़ रही थी, उसके भी सभी कमांडर निपट गए थे। बस सवाई मान सिंह हो बचा था, वो भी बहुत घायल स्थिति में थे।
उधर महाराणा प्रताप भी इस युद्ध में बच गए थे। दोनों तरफ से बारी नुक्सान हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना के मुकाबले अख़बार की सेना को बहुत ज्यादा नुक्सान हुआ था। वैसे तो इस युद्ध का निर्णय कुछ भी नहीं निकला। यदि शौर्य की बात की जाये तो इस मामले में महाराणा प्रताप और उनकी सेना की जीत मानी जाती है।
परन्तु एक बार फिर से दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में दी गई जानकारी को हटा दिया गया है। इसके अलावा किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था। जबकि सब जानते है की अख़बार की मंशा क्या थी।
आपको बता दे की गहलोत सरकार की किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की राये पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को अलग ही काट दिया गया है। अगर यह किसी और प्रदेश में हुआ होता, तो भी गलत था। परन्तु राजस्थान में यह हुआ, तो यह बहुत जाता टूल पकड़ने वाला है। इस मामले को लेकर मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य एवं प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के साथ इतिहासकारों ने भी आवाज़ उठाई है।
Demo Image Of Maharana Pratap And Haldighati Battle.
आवाज़ उठाने वालों का कहना है की इस तरह किताब से महाराणा प्रताप और चेतक घोड़े से जुड़े तथ्यों को हटाना गलत है। कांग्रेस सरकार के इस कदम से आने वाली पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान पूरा नहीं मिल सकेगा। 2017 की किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी के युद्ध एव चेतक घोड़े की वीरता का वर्णन पूरा था, अब 2020 के संस्करण में वीर प्रताप और घोड़े चेतक की वीरता को लेकर हेर फेर कर दिया गया है।
सबसे नदी बात यह रही इस इस बदलाव या हेर फेर में लेखक चंद्रशेखर शर्मा की सहमति तक नहीं ली गई है। साल 2017 के पाठ्यक्रम में यह बताया गया था कि महाराणा प्रताप ने किस तरह से हल्दीघाटी युद्ध में संघर्ष किया और उस संघर्ष के बाद आज भी महाराणा प्रताप को देश-दुनिया एक वीर देशभक्त और झुझारू योद्धा के रूप में याद किया जाता है।
ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटाने को लेकर महाराणा प्रताप पर शोध करने वाले एकमात्र इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा और महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने बताया है की महाराणा प्रताप के जीवन के ऐतिहासिक तथ्यों को किताब से हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जिन तथ्यों को समाजिक विज्ञान के वर्ष 2020 के संस्करण हटाया गया है, वो तथ्य आने वाली पीढ़ी के बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।