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Ujjain/Madhya Pradesh: नागपंचमी (Nagpanchami) का दिन महाकाल मंदिर उज्जैन (Mahakaleswer Temple Ujjain) में एक बहुत ही खास दिन माना जाता है। इसका कारण एक अन्न मंदिर से सम्बंधित है। भारतीय प्राचीन संस्कृति और हिन्दू धर्म में नाग की पूजा करने की परंपरा सदियों से रही है। हिन्दू सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग सांपों को नाग देवता के रूप में भगवान भोलेनाथ का आभूषण मानते हैं। हमारे देश में नागों के कई मशहूर मंदिर भी हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर है।
उज्जैन के महाकाल मंदिर के तीसरी मंजिल पर ही नागचंद्रेश्वर मंदिर (Nagchandreshwar Mandir Ujjain) स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे सिर्फ नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खोला जाता है। आपको बता दे की ऐसा माना जाता है की नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में उपस्थित हैं। इस कारण से केवल नागपंचमी के दिन मंदिर को खोलकर नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही कई मायनों में नागचंद्रेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर (Nagchandreshwar Temple) में देखि जाने वाली प्रतिमा 11वीं शताब्दी से मौजूद है, जिसको लेकर दावा किया जाता है कि ऐसी प्रतिमा दुनिया में और कहीं नहीं है। इस प्रतिमा को नेपाल से यहां लाया गया था। नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु की जगह शंकर भगवान सांप की सैया पर विराजमान हैं। इस मंदिर में जो प्राचीन मूर्ति स्थापित है उस पर शिव जी, गणेश जी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प सैया पर विराजित हैं।
DYK that Nagchandreshwar mandir, which is housed in #Mahakaleshwar temple of #Ujjain opens only once a year on #NagPanchami. In the month of #Shrawan, devotees from across the country come in huge numbers to worship. Faith and divinity 🙏 .@AnupamkPandey@kshtjsnghl
PC:net pic.twitter.com/07pBqAmjwj— Ankur Lahoty, IIS (@Ankur_IIS) July 25, 2020
11वीं शताब्दी के परमार कालीन इस मंदिर के शिखर के मध्य बने नागचंद्रेश्वर के मंदिर में शेष नाग (Shesha Nag) पर विराजित भगवान शिव और पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा है। मान्यता है कि भगवान नागचंद्रेश्वर के इस दुर्लभ दर्शन से कालसर्प दोष का भी निवारण होता है। वहीं, ग्रह शांति, सुख-समृद्धि और उन्नति के लिए भी लाखों श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर के दर पर मत्था टेकने पहुंचते हैं।
हिन्दू धर्म की प्राचीन मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। परन्तु महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो, इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।
🍀🌺🌼🌹jai Shree Nagchandreshwar. Ujjain sthit yah mandir varsh Mein ek bar NAGPANCHAMI ko Khulta hai 🌹🌺🌼🍀 pic.twitter.com/HNrmwWoGcX
— AD (@DHARMENDRA0209) August 5, 2019
इस प्राचीन मंदिर (Ancient Temple) का निर्माण राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास कराया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने साल 1732 में महाकाल मंदिर (Mahakal Mandir) का जीर्णोद्धार करवाया था। उसी समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में आने वाले भक्तों की यह लालसा होती है कि नागराज पर विराजे भगवान शंकर का एक बार दर्शन हो जाए। नागपंचमी के दिन यहां लाखों भक्त आते हैं।
नागपंचमी की पूर्व संध्या पर उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर में की गई आकर्षक विद्युत सज्जा #NagPanchami2020 #Mahakaleshwar #Ujjain pic.twitter.com/ZTts1DNI5v
— DDNewsMP (@DDNewsMP1) July 24, 2020
नागपंचमी के दिन महाकाल मंदिर के शिखर के मध्य में स्थित नागचंद्रेश्वर के दर्शनों के लिए लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन इस बाद कोरोना के कारण भक्तों को अपने आराध्य से सीधे दर्शन नहीं हो पाए। इसके लिए उन्हें अगले साल तक का इंतजार करना होगा। मंदिर साल में एक बार ही 24 घंटे के लिए खुलता है। इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण नागचंद्रेश्वर और महाकालेश्वर के दर्शन केवल वही श्रद्धालुओं कर पा रहे हैं, जिन्होंने ऑनलाइन प्री-बुकिंग कराई है।